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________________ १५२ मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन आगेवाले गच्छ प्रमाणका विरलन कर, उससे पूर्ववाले भगोको उस विर. लनपर रख देने और योग कर देनेसे प्रस्तारकी रचना होती है। जैसे यहां ३ पदसख्याका ४ पदसख्याके साथ प्रस्तार तैयार करना है। तीन । पद-सख्याके अग ६ आये हैं । अतः प्रथम रीतिसे प्रस्तार तैयार करनेके लिए तीन पदकी मगसंख्याका विरलन किया तो १।१।१।१।१।१ हुआ। इसके ऊपर आगेकी पद सख्याकी स्थापना की तो-४४४४४४ = २४ हए। १११११११११११ इनका आगेवाली पद सख्याके साथ प्रस्तार बनाना हो तो इस २४ सख्याका विरलन किया ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५५५५५५५५५५५५५५५५ ११११११११११११११११११११११११११११११।११।१।१।१११ ५५ और इसके ऊपर आगेवाली सख्या स्थापित कर दी तो सबको जोड देनेपर प्रस्तार बन जाता है। यह प्रस्तारसख्या १२० हुई। द्वितीय विधिसे प्रस्तार निकालने के लिए जिस गच्छ प्रमाणका प्रस्तार बनाना हो, उसीका विरलन कर, पूर्वकी भगसख्याको उसके नीचे स्थापित कर दिया जाता है और सबको जोड देनेपर प्रस्तार हो जाता है। जैसे यह ४ पद-सख्याका प्रस्तार निकालना है तो इस चारका विरलन कर दिया-१.१.१.१ और ६६६६ इस विरलनके नीचे पूर्वकी भगसस्याको स्थापित कर दिया और सवको जोड दिया तो २४ संख्या चौथे पदकी आयी। यदि पांचवें पदका प्रस्तार बनाना हो तो इस पाँचका विरलन कर चौथे पदकी सख्याको इसके नीचे स्थापित कर देनेसे द्वितीय विधिके अनुसार प्रस्तार आयेगा । अत . इसका योग किया तो १२० प्रस्तार आया। इस २४।२४,२४।२४१२४ २० प्रकार णमोकार मन्त्रके ५ पदोकी पक्तियां १२० होती हैं । यहाँपर छहछह पक्तियोके दस वर्ग बनाकर लिखे जाते हैं । इन वर्गोसे इस मन्त्रकी ध्यान विधिपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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