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________________ १५० मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन २४४५ = १२० हुई। ५८ मात्राओ, ३४ स्वरो और ३० व्यजनोको भी गच्छ बनाकर पूर्वोक्त विधिसे भगसख्या निकाल लेनी चाहिए। भगसख्या लानेका एक सस्कृत करणसूत्र निम्न है। इस करणसूत्रका आशय पूर्वोक्त गाथा करणसूत्रसे भिन्न नहीं है । मात्र जानकारीकी दृष्टिसे इस करणसूत्रको दिया जा रहा है। इसमें गाथोक्त 'मेलता के स्थानपर 'परस्परहता.' पाठ है, जो सरलताको दृष्टिसे अच्छा मालूम होता है । यद्यपि गाथामे भी 'गुणिदा' मागेवाला पद उसी अर्थका द्योतक है । कहा गया है कि पदोको रखकर "एकाद्या गच्छपर्यन्ताः परस्परहताः। राशयस्तद्धि विज्ञेयं विकल्पगणिते फलम् ॥" अर्थात् एकादि गच्छोका परस्पर गुणा कर देनेसे भगसख्या निकल जाती है। इस गणितका अभिप्राय णमोकार मन्त्रके पदो-द्वारा अक-संख्या निकालना है । मनको अभ्यस्त और एकाग्न करनेके लिए णमोकार मन्त्रके पदोका सीधा-सादा क्रमवद्ध स्मरण न कर व्यतिक्रम रूपसे स्मरण करना है । जैसे पहले 'णमो सिद्धाण' कहनेके अनन्तर 'णमो लोए सवसाहणं' पदका स्मरण करना। अर्थात् 'णमो सिद्धाण, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो आइरियाणं, णमो अरिहंताण, णमो उबज्मायाणं' इस प्रकार स्मरण करना अथवा "णमो अरिहताणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सब्वसाहूणं, णमो आइरियाणं, णमो सिद्धाणं' इस रूप स्मरण करना या किन्ही दो पद, तीन पद या चार पदोका स्मरण कर उस सख्याका निकालना । पदोंके क्रममें किसी भी प्रकारका उलट-फेर किया जा सकता है।। यहाँ यह आशका उठती है कि णमोकार मन्त्रके क्रमको बदलकर उच्चारण, स्मरण या मनन करनेपर पाप लगेगा, क्योकि इस अनादि मन्त्रका क्रमभग होनेसे विपरीत फल होगा। मत यह पद-विपर्ययका सिद्धान्त ठीक नहीं जंचता । श्रद्धालु व्यक्ति जब साधारण मन्त्रोके पद विपर्ययसे डरता है तथा अनिष्ट फल प्राप्त होनेके अनेक उदाहरण सामने प्रस्तुत हैं, तब इस महामन्त्र में इस प्रकारका परिवर्तन उचित नहीं लगता।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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