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________________ I J मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १३७ की आराधना - आत्मस्वरूपके चिन्तन द्वारा क्रोध, मान और मायाको नष्ट कर साधक अनिवृत्तिकरण नामक नौवें गुणस्थानमे पहुँचता है तथा इससे आगे लोभ कषायका भी दमन कर, दसवें गुणस्थान में पहुंचता है | यहाँ से बारहवें गुणस्थानमे स्थित होकर समस्त मोहभावको नष्ट कर देता है । अनन्तर अपने स्वरूपके ध्यान द्वारा केवलज्ञानको प्राप्त कर जिन बन जाता है । कुछ दिनोके पश्चात् शुक्लध्यानके बलसे योगोका निरोध कर चौदहवें गुणस्थान मे पहुँच क्षण-भर मे निर्वाण लाभ करता है । यह आत्माकी चरम शुद्धावस्था है, इसीको प्राप्त कर आत्मा कर्मजाल से युक्त होनेपर भी सम्यक्त्वको प्राप्त कर लेता है। आत्माकी सिद्धिका प्रधान कारण इस मन्त्रकी आराधना ही है । इसीसे कर्मजालको नष्ट कर स्वातन्त्र्यकी प्राप्तिका यह कारण बनता है | उपर्युक्त गुणस्थान- विकासकी परम्पराको देखनेसे प्रतीत होता है कि णमोकार मन्त्र- द्वारा कर्मोंके आस्रवको रोका जा सकता है तथा सचित कर्मोकी निर्जरा द्वारा क्षय कर निर्वाणलाभ किया जा सकता है। इतना ही नही बल्कि णमोकार मन्त्रकी आराधनासे कर्मोंकी अवस्था मे भी परिवर्तन किया जा सकता है । प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग इन चारो बन्धो मे इस मन्त्र की साधना से स्थिति मोर अनुभाग बन्धको घटाया जा सकता है । शुभ कर्मोंमे उत्कर्पण और अशुभ कर्मोंमे अपकर्षणकरण किया जा सकता है।. इस मन्त्रकी पवित्र सावनासे उत्पन्न हुई निर्मलता से किन्ही विशेष कर्मों की उदीरणा भी की जा सकती है। अतएव कर्म सिद्धान्त की अपेक्षा से भी इस महामन्त्रका बडा भारी महत्त्व है। आत्मविकासके लिए यह एक सवल साधन है । अनादिनिधन इस णमोकार मन्त्रमे आठ कर्म, कर्मोके मास्रवके प्रत्ययधर्म सिद्धान्तके अनेक मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कपाय और योग, वन्ध किया और वन्धके द्रव्य भाव भेद तथा उसके की उत्पत्तिका प्रभेद, कर्मोंके करण, वन्धके चार प्रधान भेद, सात तत्त्व, नव पदार्थ, बन्ध, उदय, सत्त्व, चार स्थान - णमोकार मन्त्र A
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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