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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १३७ णमोकार महामन्त्रका भक्तिपूर्वक उच्चारण, मनन और चिन्तन करना आत्माके स्वरूप-दर्शनमे सहायक है। इस महामन्त्रके भावसहित उच्चारण करने मात्रसे मोहनीयकर्मकी प्रथम शक्ति क्षीण होने लगती है । एक बात यह भी है कि मोहनीय कर्मके मन्द हुए बिना इस महामन्त्रकी प्राप्ति होना अशक्य है । आत्माकी प्रथमावस्था-मिथ्यात्व भूमिमे इस मन्त्रके उच्चारण और मननसे जीव दूर रहना चाहता है, उसकी प्रवृत्ति इस महामन्त्रकी ओर नही होती। परन्तु जब दर्शन-मोहनीयका उपशम, क्षय या क्षयोपशम हो जाता है, तब चतुर्थ गुणस्यान- स्वरूप-दर्शनमे इस महामन्त्रकी ओर श्रद्धा ही सम्यक्त्व है, क्योकि इससे रत्नत्रयगुणविशिष्ट आत्माके शुद्ध. स्वरूपको नमस्कार किया गया है । कर्मसिद्धान्तके आध्यात्मिक विकासके अनुसार अध पतनकी प्रथम अवस्था मिथ्यात्वमे मात्माकी बिलकुल गिरी हुई अवस्या बतलायी है, आत्मा यहाँ आधि मौतिक उत्कर्ष कर सकता है, परन्तु अपने तात्त्विक लक्ष्यसे दूर रहता है। णमोकार मन्त्रका भावसहित उच्चारण इस भूमिमे सम्भव नही । बहिरात्मा बनकर आत्मा महाभ्रममे पड़ा रहता है । राग-द्वेषका पटल और अधिक सघन होता जाता है। भावपूर्वक णमोकार मन्त्रके जाप, ध्यान और मननसे यह अघ.पतनकी अवस्या दूर हो जाती है, राग-द्वेषको दीवाल जर्जरित हो टूटने लगती है, मोहको प्रधान शक्ति दर्शनमोहनीयके शिथिल होते ही चारित्रमोह भी मन्द होने लगता है । यद्यपि कुछ समय तक दर्शनमोहनीयकी मन्दतासे उत्पन्न आत्मिक शक्तिको मानसिक विकारोके साथ युद्ध करना पडता है, परन्तु णमोकारमन्त्र अपनी अद्भुत शक्तिके द्वारा मानसिक विकारोको पराजित कर देता है। राग-द्वेष की तीव्रतम दुर्भेद्य दीवारको एकमात्र णमोकार मन्त्र ही तोड़नेमे समर्थ है। विकासोन्मुखी आत्माके लिए यह महामन्त्र अगपरित्राणका कार्य करता है। इस मन्त्रकी आराधनासे वीर्योल्लास और आत्मशुद्धि इतनी बढ़ जाती है, जिससे मिथ्यात्वको पराजित करनेमें विलम्ब नही लगता तथा यह जीव चतुर्थगुणस्थानमें पहुंच जाता है।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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