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________________ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १२९ मन्त्रके विवेचनमें पदोका क्रम ठीक नही रखा गया है । क्रम दो प्रकारका होता है - पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी । णमोकार मन्त्र मे पूर्वानुपूर्वी क्रमका निर्वाह नही किया गया है, क्योकि सिद्धोका आत्मा पूर्ण विशुद्ध है, समस्त आत्मिक गुणका विकास सिद्धोमे ही है । अतएव विशुद्धिकी अपेक्षा पूज्य होने के कारण सिद्धों को सर्वप्रथम नमस्कार होना चाहिए था, पर णमोकार मन्त्र में ऐसा नही किया गया है । अत पूर्वानुपूर्वी क्रम यहाँपर नही है । पश्चानुपूर्वीक्रमका भी निर्वाह यहाँ पर नहीं किया गया है, क्योकि इस क्रम से सबसे पहले साधुको नमस्कार और सबसे पीछे सिद्धोको नमस्कार होना चाहिए था। समाधान - उपर्युक्त शंका ठीक नही है । यहाँ पूर्वानुपूर्वी क्रम ही है । सिद्धों की अपेक्षा अरिहन्त अधिक उपकारी हैं, क्योकि इन्हीं के उपदेशसे हमे सिद्धोका ज्ञान प्राप्त होना है। इसके अनन्तर गुणोंकी न्यूनता और अधिकता की अपेक्षा अन्य परमेष्ठियोंको नमस्कार किया गया है । यो तो 'पादक्रम' प्रकरण मे इसका विस्तृत विवेचन किया जा चुका है। अत यहाँपर उन सभी युक्तियो और प्रमाणोको उद्धृत करना असंगत होगा । प्रयोजनफल द्वार - णमोकार मन्त्रकी आराधनासे लौकिक और पारलौकिक फलोकी प्राप्ति किस प्रकारसे होती है, इसका वर्णन इस द्वारमे किया गया है | इस प्रकार नय, निक्षेप एव विभिन्न हेतुओंके द्वारा णमोकार मन्त्र का वर्णन जैनागममे मिलता है । अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामीके दिव्य उपदेशका सकलन द्वादशाग साहित्य के रूपमें गणवर देवने किया है। इस सकलनमे कर्मप्रवाद नामके पूर्वमे कर्म विषयका वर्णन विस्तार से किया गया है । इसके सिवा द्वितीय पूर्वके एक विभागका नाम कर्म-प्राभृन और पचम पूर्वके एक विभागका इनमे भी कर्मविषयक वर्णन है। इसी प्राचीन गये दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमे कषाय कर्म - साहित्य और महामन्त्र नाम कपाय- प्राभृत है। साहित्य के आधारपर रचे ९
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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