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________________ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन १२७ गुणको तथा उनके धारण करनेवाले पंचपरमेष्ठियोको नमस्कार किया गया है । यही इस णमोकारमन्त्रकी वस्तु है । आक्षेपद्वार - णमोकारमन्त्रके सम्बन्धमे कुछ शकाएं की गयी हैं। इन शकाओका विवरण हो इस द्वारमें किया गया है। बताया गया है कि सिद्ध और साधु इन दोनोको नमस्कार करनेसे काम चल सकता है, फिर पांच शुद्धात्माओको नमस्कार क्यो किया गया है ? क्योकि जीवन्मुक्त अरिहन्तका सिद्ध में और न्यून रत्नत्रय गुणधारी आचार्य और उपाध्यायका साधुपरमेष्ठी में अन्तर्भाव हो जाता है, अत. पंचपरमेष्ठीको नमस्कार करना उचित नहीं । यदि यह कहा जाये कि विशेप दृष्टिसे भिन्नत्वकी सूचना देनेके लिए नमस्कार किया है तो सिद्धोके अवगाहना, तीर्थ, लिंग, क्षेत्र आदिकी अपेक्षासे अनेक भेद होते हैं तथा अरिहन्तोके तीर्थकर अरिहन्त, सामान्य अरिहन्त आदि भी अनेक भेद हैं। इसी प्रकार आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठोके भी मनेक भेद हो जाते हैं। इसी प्रकार सब परमेष्ठी अनन्त हो जायेंगे, फिर इन्हें पांच मानकर नमस्कार करना कैसे उपयुक्त कहा जायेगा। प्रसिद्धिद्वार - इस द्वारमें पूर्वोक्त द्वारमें आपादित शकाओका निराकरण किया गया है। द्विविध नमस्कार नहीं किया जा सकता है, क्योकि अव्यापकपनेका दोष आयेगा। सिद्ध कहनेसे अरिहन्तके समस्त गुणोका वोध नहीं होता है, इसी प्रकार साघु कहनेसे आचार्य और उपाध्यायके गुणोका भी ग्रहण नहीं होता है । अतएव सक्षेपसे द्विविध परमेष्ठीको नमस्कार करना अयुक्त है । नियुक्तिकारने भी बताया है - अरिहन्ताई नियमा, साहूसाहू उ ते सू भइयव्वा । तम्हा पचिवहो खलु हेउनिमित्तं हवइ सिद्धो ॥३२०२।। साधुमात्रनमस्कारो विशिष्टोऽहंदादिगुणनमस्कृतिफल प्रापणसमर्थो न मवति । तरसामान्यामिधाननमस्कारकृतत्वात, मनुष्यमात्रनमस्कारवत्, -- -LREE
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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