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________________ १२४ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन सकोच । भावसंकोचनं तु विशुद्धस्य मनसोऽहं शादिगुणेषु निवेशः।" अर्थात् 'नम. अहंद्भ्यः ' इत्यादि पदोमें नम. शब्द पूजार्थक है। पूजा दो प्रकारसे सम्पन्न की जाती है - द्रव्य संकोच और भाव-संकोच द्वारा । द्रव्यसकोचसे अभिप्राय है हाथ, सिर आदिका झुकाना - नम्रीभूत करना और भाव सकोचका तात्पर्य भगवान् मरिहन्तके गुणोमें मनको लगाना। द्रव्य. सकोच और भाव-संकोचके सयोगी चार भग होते हैं - [१] द्रव्य-संकोच न भाव-सकोच, [२] भाव-सकोच न द्रव्य-सकोच [३] द्रव्य-सकोच भाव. सकोच और [४] न द्रव्य सकोच न भाव सकोच । हाथ, सिर आदिको नम्र करना, किन्तु भीतरी अन्तरग परिणतिमें नम्रताका न आना अर्थात् मन्तरग परिणामोमें श्रद्धाभावका अभाव हो और ऊपरसे श्रद्धा प्रकट करना यह प्रयम भगका अर्थ है । दूसरे भगके अनुसार भीतर परिणामोमें श्रद्धाभाव रहे, किन्तु ऊपर श्रद्धा न दिखलाना । फलतः नमस्कार करते समय भीतर श्रद्धा रहनेपर भी, हाथ न जोडना और सिरको न झुकाना। तृतीय भंगका अर्थ है कि भीतर भी श्रद्धा हो और ऊपरसे भी हाथ जोडना, सिर झुकाना मादि नमस्कारको क्रियाओको सम्पन्न करे। चौथे भगका अर्थ है कि भीतर भी श्रद्धाकी कमी और ऊपर भी नमस्कार-सम्बन्धी क्रियामओका अभाव रहे। पदार्थद्वारका तात्पर्य यह है कि द्रव्यमावशुद्धिपूर्वक णमोकार मन्त्रका स्मरण, मनन और जप करना । श्रद्धापूर्वक पचपरमेष्ठोकी शरणमें जाने तथा शरणसूचक शारीरिक क्रियाओके सम्पन्न करनेसे ही आत्मामें शक्तिका जागरण होता है । कर्माविष्ट आत्मा शुद्धात्माओको द्रव्यभावकी शुद्धिपूर्वक नमस्कार करनेसे उनके आदर्शसे तद्रूप बनती है। प्ररूपणाद्वार-वाच्य-वाचक प्रतिपाद्य-प्रतिपादक विषय-विपयो भावकी दृष्टिसे णमोकार मन्त्रके पदोका व्याख्यान करना प्ररूपणाद्वार है। इसमें किं, कस्व, केन, क्व, कियत्कालं और कतिविध इन छह प्रश्नोका अर्थात् निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधानका समाधान
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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