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________________ १२० मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन वस्तुके स्वरूपका वास्तविक विवेचन नय और प्रमाणके बिना हो नहीं सकता । नयके जैनागममें सात भेद हैं - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवभूत । सामान्यसे नयके द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक ये दो भेद किये जाते हैं। द्रव्यको प्रधान रूपसे विषय करनेवाला नय द्रध्याथिक और पर्यायको प्रधानतः विषय करनेवाला पर्यायाथिक कहा जाता है । पूर्वोक्त सातो नयोमें-से नेगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन भेद द्रव्याथिकके और ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत पर्यायार्थिक नयके भेद हैं। सातों नयोकी अपेक्षासे इस महामन्त्रको उत्पत्ति और अनुत्पत्तिके सम्बन्ध में विचार करते हुए कहा जाता है कि द्रव्यायिक नयको अपेक्षा यह मन्त्र नित्य है । शब्दरूप पुद्गलवर्गणाएं नित्य है, उनका कभी विनाश नहीं होता है । कहा भी है - उप्पणाणुप्पणो इत्थ नया णोगमस्सणुप्पण्णो । सेसाणं उप्पण्णो जइ कत्तो विविह सामिसा ।। अर्थात् - नैगमनकी अपेक्षा यह णमोकार मन्त्र अनुत्पन्न - नित्य है। सामान्य मात्र विषयको ग्रहण करनेके कारण इस नयका विषय नोव्यमान है । उत्पाद और व्ययको यह नहीं ग्रहण करता, मतएव इस नयको अपेक्षा. से यह मन्त्र नित्य है । विशेष पर्यायको ग्रहण करनेवाले नयोको अपेक्षासे यह मन्त्र उत्पाद-व्ययसे युक्त है। क्योकि इस महामन्त्रकी उत्पत्ति के हेतु समुत्यान, वचन और लब्धि ये तीन है । णमोकारमन्त्रका धारण सशरीरी प्राणी करता है और शरीरको प्राप्ति अनादिकालसे बीजाकुर न्यायसे होती मा रही है तथा प्रत्येक जन्ममें भिन्न-भिन्न शरीर होते हैं, अतः वर्तमान जन्मके शरीरको अपेक्षा णमोकारमन्त्र सादि और सोत्पत्तिक है । इस मन्त्रकी प्राप्ति गुरुवचनोसे होती है, अत उत्पत्तिवाला होनेसे सादि है। इस महामन्त्रको प्राप्ति योग्य ध्रुतज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम होने पर ही होती है, इस अपेक्षासे यह मन्त्र उत्पाद व्ययवाला प्रमाणित होता है। उपर्युक्त विवेचनसे सिद्ध होता है कि नगम, सग्रह और व्यवहार नयको
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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