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________________ ११० मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन हुआ सोचे, पुन. अग्निकी शिखा उठती हुई सोचना चाहिए। आगको ज्वाला उठकर आठो कर्मोके कमलको जलाने लगी। कमलके वीचसे फूटकर अग्निकी लौ मस्तकपर आ गयी। इसका आधा भाग शरीरके एक तरफ और शेष आधा भाग शरीरके दूसरी तरफ मिलकर दोनो कोने मिल गये । अग्निमय त्रिकोण सब प्रकारसे शरीरको वेष्टित किये हुए है। इस त्रिकोणमें र र र र र र र र अक्षरोको अग्निमय फैले हुए विचारे अर्थात् इस त्रिकोणके तीनो कोण अग्निमय र र र अक्षरोके बने हुए हैं। इसके बाहरी तीनो कोणोपर अग्निमय साथिया तथा भीतरी तीनो कोणोपर अग्निमय ॐ हं लिखा हुमा सोचे । पश्चात् सोचे कि भीतरी अग्निकी ज्वाला कर्मोको और बाहरी अग्निकी ज्वाला शरीरको जला रही है। जलते-जलते कर्म और शरीर दोनों ही जलकर राख हो गये हैं तथा अग्निकी ज्वाला शान्त हो गयी है अथवा पहलेको रेफमें समा गयी है, जहाँसे वह उठी थी, इतना अभ्यास करना अग्नि-धारणा है । वायु-धारणा - पुन साधक चिन्तन करे कि मेरे चारो ओर प्रचण्ड वायु चल रही है । वह वायु गोल मण्डलाकार होकर मुझे चारो ओरसे घेरे हुए है । इस मण्डलमें आठ जगह 'स्वार्य-स्वाय' लिखा है । यह वायुमण्डल कर्म तथा शरीरको रजको उडा रहा है, आत्मा स्वच्छ तथा निर्मल होता जा रहा है । इस प्रकार ध्यान करना वायु-धारणा है। जल-धारणा - पश्चात् चिन्तन करे कि आकाश मेवाच्छन्न हो गया है, बादल गरजने लगे है, बिजली चमकने लगी है और खूब जोरकी वर्षा होने लगी है । ऊपर पानीका एक अर्धचन्द्राकार मण्डल बन गया है, जिसपर प प प प प प प कर्मस्थानोपर लिखा है । गिरनेवाले पानीकी सहन धाराएँ आत्माके ऊपर लगी हुई कर्मरगको घोकर आत्माको साफ कर रही है । इस प्रकार चिन्तन करना जल धारणा है । वत्वरूपवती धारणा - वही साधक आगे चिन्तन करे कि अब में। सिद्ध, बुद्ध, सवज्ञ, निर्मल, निरजन, कर्म तथा शरीरसे रहित चैतन्य आत्मा
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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