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________________ १०६ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन तो मन भी अधीन हो जाता है । इसके तीन भेद हैं - पूरक, कुम्भक और रेचक । नासिका छिद्रके द्वारा वायुको खीचकर शरीरमे भरना पूरक, उस पूरक पवनको नामिके मध्यमें स्थिर करना कुम्भक और उसे धीरे-धीरे बाहर निकालना रेचक है। यह वायुमण्डल चार प्रकारका बतलाया गया है - पृथ्वीमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और अग्निमण्डल । इन चारोंको पहचान बताते हुए कहा है कि क्षितिबीजसे युक्त, गले हुए स्वर्णके समान काचन प्रभावाला, वनके चिह्नसे संयुक्त, चौकोर पृथ्वीमण्डल है। वरुणवीजसे युक्त, अर्धचन्द्राकार, चन्द्रसदृश शुक्लवर्ण और अमृतस्वरूप जलसे सिचित् अप्मण्डल है। पवनबीजाक्षरयुक्त, सुवृत्त, बिन्दुओसहित नीलाजन घनके समान, दुर्लक्ष्य वायुमण्डल है। अग्नि के स्फुलिंग समान पिंगलवर्ण, भीम - रौद्ररूप, उध्वंगमन करनेवाला, त्रिकोणाकार, स्वस्तिकसे युक्त एव वह्नित्रीजयुक्त अग्निमण्डल होता है । इस प्रकार चारो वायुमण्डलोको पहचानके रक्षण बतलाये है, परन्तु इन लक्षणोके माधारसे पहचानना मतीव दुष्कर है। प्राणायामके अत्यन्त अभ्याससे ही किसी साधकविशेषको इनका सवेदन हो सकता है। इन चारो वायुओक प्रवेश और निस्सरणसे जय-पराजय, जीवन-मरण, हानि-लाम आदि अनेक प्रश्नोका समाकृप्य यदा प्राणधारण स तु पूरकः । नामिमध्ये स्थिरीकृत्य रोधन स तु कुम्भक । यत्कोष्ठादतियत्नेन नासानापुरातनै । वहि. प्रक्षेपण वायो स रेचक इति स्मृतः ।। शनैः शनैर्मनोऽजस्र वितन्द्रः सह चाथुना। प्रवेश्य हृदयाम्मोजकर्णिकाया नियन्त्रयेत् ॥ विकल्पा न प्रसयन्ते विषयाशा निवर्तते । अन्तः स्फुरति विज्ञानं तत्र चित्त स्थिरीकृते ॥ 1-छानार्णव प्र० २६, श्लो० १, २, १०, ११
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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