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________________ कर्मफल २५ और सोचने लगा कि यदि यह भीतर आ गया तो कोन जाने किसी तीखे शस्त्र से मुझ पर आक्रमण ही कर बैठे । उधर बाहर खड़े उसके साथियो को जब उस स्थिति का भान हुआ कि उसके पैर भीतर से पकड़ लिए गए हे तो वे सोचने लगे कि यदि यह भीतर घसीट लिया गया और पकड लिया गया तो सारा भेद खुल जायगा, सब लोग नाहक मारे जायेंगे | अत चिन्तित होकर वे लोग उसके दोनो हाथ पकडकर उसे बाहर खीचने लगे । इस प्रकार भीतर और बाहर दोनो ओर से खीचा जाने पर नोकदार, तीक्ष्ण कंगूरे वाली उसकी कारीगरी स्वयं उसी के शरीर को चीरने लगी । वह चिल्लाया-“अरे छोड़ दो मुझे, मैं मर जाऊँगा ।" किन्तु कृत-कर्म के फल भोगने की उसकी घडी आ चुकी थी। साथी उसे इसलिए नही छोड़ते थे कि यदि यह पकडा गया तो उन सभी का भेद खुल जायगा, तथा गृहस्वामी तो भला उसे छोडता ही क्यो ? अन्ततः उस खीचातानी मे उसका सारा शरीर लहू-लुहान हो गया और वेदना से तडपते तडपते उसने प्राण त्याग दिए । दुर्भाग्य का मारा एक कलाकार चोरी जैसे निकृष्ट कर्म मे प्रवृत्त हुआ और उसे अपने कर्म का फल भोगना ही पडा । - उत्तराध्ययन
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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