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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं उस मिथ्यादृष्टि देव को अपनी असफलता पर बडा खेद हुआ। उसने कामदेव को पराजित करने की इच्छा से पुन हाथी का रूप बनाया । हाथी भी भयावह और विरूप था। मेघ के समान गर्जन करता हुआ वह पौपधशाला मे आया । वीभत्स आवाज मे चिधाडते हुए कहने लगा “कामदेव । अव भी तू अपने हठ पर अडा रहेगा? कान खोलकर सुन लो, मेरे कथनानुसार यदि तूने धर्म का परित्याग न किया तो अपनी सूंड मे लपेट कर तुझे पौषधशाला से वाहर ले जाकर अपने दॉतो, पैरो और मूंड से तेरे अंग-अंग विच्छिन्न कर दूंगा । तू दु ख से पीडित होकर मृत्यु का ग्राम बन जायगा।" आत्मलक्षी किसी की चुनीती से घबराता नही । कामदेव अपने लक्ष्य पर दृढ था। वह पूर्ववत् कायोत्सर्ग मे लीन रहा । हाथी के रूप मे देव ने अपने कथन को अनेक बार दुहराया, किन्तु कोई फल न हुआ । अव क्रोध के अतिरेक मे उसने कामदेव को अपनी विशाल संड मे लपेटा ओर पोपधशाला से वाहर ला पटका । अत्यन्त निर्दय होकर उसे आकाश मे उछाला। नीचे गिरते हुए कामदेव को तीक्ष्ण दांतो से विदीर्ण कर पैरो तले रौदा । लेकिन असह्य वेदना से पीडित होते हुए भी कामदेव अविचलित रहा और शान्त भाव से सब कुछ सहता रहा। देव ने दूसरी वार भी पराजित होकर कामदेव को पोपधशाला मे लाकर विठा दिया । बाहर आकर हाथी का रूप त्याग दिया। पराजय पर पराजय होने पर किसी का भी हृदय प्रतिशोध की भावना से भर जाता है । वह दुष्ट देव भी प्रतिशोध की ज्वाला मे दग्ध हो रहा था । अत अशेप शक्ति का उपयोग कर वह इस बार भयकर सर्प बनकर फुफकारता हुआ पुन पौपधशाला मे प्रविष्टि हुआ। अपने भयानक फन फैलाता हुआ, अग्नि की भाँति उग्र साँसो को फेकता हुआ बोला ___ “कामदेव । यदि आज तू अपने व्रतो से विमुख न हुआ तो इस वार के उपमर्ग से तू वत्र नहीं सकता । देख मेरे विपले, भयंकर शरीर को। सरसर करता हुआ तुझ पर चढूंगा और गले मे तीन ऑटे मारूंगा। विप से भरी पैनी दाढो मे तेरा वक्षस्थल चीर डालूंगा । उसमे भयानक विप उगल दूंगा । उसकी वेदना असहनीय होगी। तू तडप-तडप कर बेहोश हो जायगा और उसी अवस्था मे तेरी मृत्यु हो जायगी।"
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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