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________________ ६८ संयम से सिद्धि वात बहुत पुरानी है । कुरु जनपद मे इपुकार नामक एक सुन्दर नगर था । उस नगर का अधिपति इषुकार था और उसकी पत्नी का नाम कमलावती था। ___ इषुकार नगर मे भृगु नामक एक प्रतिभा सम्पन्न राजपुरोहित रहता था । उसकी पत्नी का नाम यशा था। वह वशिष्ठ कुल मे जन्मी थी अत उसका अपर नाम वाशिष्ठी भी था । सन्तान के अभाव मे वे दोनो रात-दिन चिन्ता के सागर मे डुबकी लगाया करते थे । एक वार दो देव जिनका जन्म भृगुपुरोहित के यहाँ होने वाला था। वे जैन श्रमण के वेश को धारण कर भृगुपुरोहित के घर पहुंचे। मुनियो को देखकर भृगु और यशा अत्यन्त प्रसन्न हुए । वन्दन कर उन्होने मुनियो से उपदेश श्रवण किया । श्रावक के व्रत ग्रहण किये। पुरोहित ने प्रश्न किया-भगवन् । हमारे कोई पुत्र होगा या नही ? मुनियो ने उत्तर देते हुए कहा-पुरोहित जी । तुम व्यर्थ की चिन्ता न करो, हम कहते है कि तुम्हारे एक नहीं अपितु दो पुत्र होगे, पर एक बात है ? पुरोहित ने प्रतिप्रश्न किया-भगवन् । वह कौनसी बात है ? जिसे आप कहने मे मकोच कर रहे है ? सकोच की तो कोई बात नहीं, पर तुम्हे सुनकर मन मे विचार होगा। किन्तु सत्य तथ्य को प्रकट करना तो हम मुनियो का कर्तव्य है। कहिए गुरुदेव | शीघ्र कहिए | भृगु ने निवेदन किया। वे दोनो बालक बात्यावस्था मे ही श्रमण वनेगे। श्रमण वनकर वे अत्यधिक जिनधर्म की प्रभावना करेगे । अत तुम्हे चिन्तित होने की आवसाना नहीं। मुनि वहाँ से प्रम्गन कर गये । कुछ समय के पश्चात् दोनो ने भृगु २७३
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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