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________________ २३० महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ क्यो आकर्षित होते हो? इतनी दूर से सिर पर उठाकर लाये गये लोहे को छोडना कहाँ की बुद्धिमानी हे ?" दुसरे साथियो ने उसे "लोहे से गंगे का अधिक मूल्य प्राप्त होगा" कहकर समझाने का प्रयास किया, किन्तु वह अपने हठ पर अडिग ही रहा । निदान सब आगे चले । आगे चलने पर उन्हे ताँबे की खाने मिती । राँगा छोडनर जब तॉवा लेने की बात आई तो पहले व्यापारी को यह बिल्कुल नही रुचा । वात समझाने पर भी वह अपनी हठ पर अडा ही रहा। ___अन्य व्यापारियो ने सोचा--- "हठ के वशीभूत होकर यह मूर्खता कर रहा है तो इसे लोहा ही लिए रहने दो, लेकिन हम सबको धन कमाना हे इमलिए लाभदायक वस्तु का त्याग क्यो करे ?" ऐसा सोचकर उन लोगो ने गंगे को वही छोडकर ताँबे के गट्टर बाँध लिए। जैसे-जैसे ब्यापारी आगे चलते गये वैसे-वैसे उन्हे क्रमश चादी और फिर सोने की खाने मिली। सब पीछे से उठाए हुए गट्ठर वही डालकर आगे की वहम्त्य वस्तुओ के गट्ठर बाँधते गये । साथ ही उस हठी व्यापारी तो भी समझाते रहे-"लोहे का भारी-भरकम गट्ठर फेक दो, उसमे तुम्हे कौन-सी विशेष रकम प्राप्त हो जायेगी ? सामने पडे सोने-चांदी की अवहाना कर तुम्हे अन्त में पछताना पड़ेगा । भाग्य मे यदि ऐगा अवसर आ गया है तो इसे व्यर्थ चूकना परले सिरे की मुर्खता ही होगी।" पहला माथी उन लोगो की वात सनकर खीझ उठा-"तुम लोग
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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