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________________ १८२ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ चाहिए कि जब इसे यह उपाय ज्ञात हो गया था तब इसने अपनी रक्षा क्यो नही की ? पूछने पर उसने बताया “अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त ओर किसे दोप दं? विषय-भोग की लालसा ने ही मेरे प्राण ले लिए समझो। मै कामान्ध हो गया था । मैं किन्तु भाई, तुम्हारे लिए अभी अवसर हे । शीव्रता करो, अन्यथा समय हाय से निकल जायगा।" दोनो भाई भारी हृदय लेकर वहाँ से चल पडे । स्नानादि से शुद्ध होकर यक्ष के प्रकट होने और बोलने की प्रतीक्षा करने लगे। समय आने पर यक्ष चिल्लाया-"किसको तारूं ? किसको पार उतारूं ?" "हमे तारो । हमे पार उतारो”-दोनो भाई हाथ जोडकर बोले । यक्ष प्रसन्न हुआ । बोला "ठीक है । तुम्हारी रक्षा करूंगा। किन्तु याद रखना, देवी जब आएगी तब पीछा करेगी । अनेक प्रकार से तुम्हे मोहित करने का प्रयत्न करेगी। डराएगी भी। यदि तुम तनिक भी विचलित हुए तो फिर मैं तुम्हारी रक्षा नही कर सकूँगा। भलो प्रकार सोच लो। कोई भी एक मार्ग चुन लो । या तो देवी के पास रहो ओर भोग विलास मे डूबे रहो, या दृढतापूर्वक मेरी शरण मे आओ और अपनी रक्षा करो।" देवी के चंगुल से बच निकलने का हो दृढ निश्चय दोनो भाइयो का जानकर बह यक्ष तुरन्त अश्व के रूप में परिवर्तित हो गया और उन्हे अपनी पीठ पर बैठाकर पवन वेग से चम्पानगरी की ओर चल पडा । देवी ने लोटकर दोनो भाइयो को गायव पाया तो तुरन्त अपने अवधिज्ञान का उपयोग कर उसने सारी स्थिति को जान लिया। वह क्रोध से जल उठी। नगी तलवार हाय मे लेकर वह अपनी विपुल शक्ति का प्रयोग कर तत्क्षण जिनरक्ष आर. जिनपाल के ममीप आ पहुंची। कडकडाती आवाज में वह बोली
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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