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________________ ( १२ ) भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी के ऐतिहासिक वर्ष मे ऐतिहासिक, दार्जनिक, सास्कृतिक गन्नो के लेखन के साथ ही मेरे अन्तर्मानिम में यह विचार उद्र हुआ कि भगवान महावीर द्वारा कथित आगम साहित्य की सभी कथाएँ आधुनिक हिन्दी में लिखी जाये | भगवान महावीर एक अनुशीलन, जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, भगवान महावीर की दार्शनिक चर्चाएँ प्रभृति ग्रन्थों के लेखन मे अत्यधिक व्यस्त होने से प्रस्तुत कार्य मे विलम्ब हो गया | ग्रन्थ अत्यधिक वडा न हो जाये इस दृष्टि मल आगम साहित्य की सम्पूर्ण कथाएँ उसमे नही दी है, अवशेष कथाए विनीन भाग में देने का विचार है और उसके पश्चात् निर्मुक्ति, चूणि, भाष्य और गज की कथाएं भी लिखने की भावना है । प्रमुख पाठक अनुभव करेगा कि इन कहानियो में कही पर वैराग्य की भावना कर रही हैं तो कही पर बाल क्रीडा, मातृम्नेह, और वात्सल्य रस तरगिन हो रहा है रही पर पवित्र चरित्र की शुभ्र उर्मियाँ प्रवाहित हो रही है, कही पर क्षमा, सरसता की रसधारा बह रही है तो कही पर वीर व शान्त रम की जलती हुई क्लाले कल्लोल कर रही है । पच्चीस सौ वर्ष पूर्व कही गई ये कथाएँ भी भौतिकता की चकाचोध में पले पीसे मानव को प्रेरणा प्रदान करने वाली हैं, जीवन के तत्व है जो सदा-सर्वदा उपयोगी है । CIT क्षेत्र अध्यात्मयोगी, राजस्थानकेसरी प्रसिद्ध वक्ता श्री मूर्ति की म० मर आध्यात्मिक व साहित्यिक जीवन के प्रेरणा-स्तम्भ है ही में प्रगति के पथ पर निरन्तर आगे बढ रहा हूँ, ग्रथ मे जो का फल है । प्रतिभाति मातेश्वरी महामती श्री प्रभावती जी म० व ज्येष्ठअपि विदुषी गावी रत्न श्री पुष्पवती जी की निरन्तर प्रेरणा और सेवामूर्ति दुरी गरे मुनि जी व दिनेश मुनिजी की सतन सेवा के कारण ग्रथ --------71 स्थायी श्री ज्ञानजी मारिल ने कुछ कथाओ को सजाने का भी हार को विस्मृत नहीं हो माता । 1 की दृष्टि से सजाना क्षेत्र स्तमूर्ति श्रीचन्द जी सुगना करता है यह महत्वपूर्ण गालन पालिए जीव - देवेन्द्र मुनि
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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