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________________ १४८ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं वडा होकर वृद्धावस्था मे मेरी सेवा करेगा ।" - स्वयं रानी ने ही एक उपाय सुझाया । वात अमात्य को भी जच गई । भाग्यवशात् रानी और पोट्टिला ने एक ही दिन पुत्र और पुत्री को जन्म दिया। रानी ने गुपचुप रूप से अमात्य को बुला भेजा और अपना नवजात शिशुपुत्र उसे सोपते हुए कहा- "यह मेरी अमानत लो। इसे सुरक्षित रखना । भूलना नही कि यह तुम्हारी महारानी का पुत्र है, उसकी अमानत है ।" " प्राण देकर भी इसकी रक्षा करूंगा ।" यह वचन देकर अमात्य बालक को ले गया । पोट्टला ने मृत कन्या को जन्म दिया । उसे रानी के पास ले जाकर सूचना फैला दी कि रानी ने मृत कन्या को जन्म दिया है । इस प्रकार राजा भी निश्चिन्त हो गया और रानी भी । पोट्टिला रानी के पुत्र को अपने ही पुत्र के समान पालने लगी । अमात्य ने पुत्र - जन्मोत्सव बडे ठाठ से मनाया । उसका नाम कनकध्वज रखा और उसका कारण यह बताया कि राजा कनकरथ के राज्य मे उत्पन्न होने के कारण ही यह नाम उसने पसन्द किया है । वालक वढने लगा। धीरे-धीरे वह सुन्दर युवक हो गया। सभी कलाओं में पारंगत । उधर मनुष्य का मन ही तो है, जाने कब किस दिशा मे चल पडे । अमात्य, जो इतने उत्लास से पोट्टिला को अपनी पत्नी बनाकर लाया था, अव उससे विरक्ति प्रदर्शित करने लगा । उसका मन अपनी सुन्दरी पत्नी से भर गया था । पोट्टिला बेचारी के जीवन मे दुर्भाग्य का आरम्भ हुआ और वह दुखी हो गई, चिन्तित रहने लगी । वैसे तेतलिपुत्र ने पोट्टिला पर कोई बन्धन नही रखा था । उसे दानपुण्य करने की पूरी छूट थी और घर की स्वामिनी भी पति ने उसे बना रखा था । केवल प्रेम की सुवास उड गई थी । जीवन- पुप्प के रंग तो दीखने मे ज्यो के त्यो थे । पोट्टिला इतने में ही सन्तोष माने बैठी थी । नगरी में पधारी । वे एक वार सुत्रता नाम की एक आर्या उस विदुषी थी। उनका शिष्य परिवार भी बडा था ब्रह्मचारिणी थी । वे ईर्ष्या-समिति से युक्त
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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