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________________ सम्यान, ऊंचाई, आयुष्य, शरीर के वर्णन, शिष्य-समुदाय, गणधरो, माध्विया, प्रतिनियो की सख्या, चतुविध सघ के सदस्यो की सख्या, केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, वादी, अनुत्तर विमानगामी तथा सिद्धो की संख्या एव वे अन्त में कितने उपवास करके मोक्ष गये आदि मावो का वर्णन है । ____ गण्डिकानुयोग क्या है ? गण्डिकानुयोग भी अनेक प्रकार का है । कुलकर गण्डिकाये, तीर्यबर गण्डिकाये, चक्रवर्ती गण्डिकाये, दशारगण्डिकाये, वासुदेव गण्डिकाय, हरिवश गण्डिकाये, मद्र बाहु गण्डिकाये, तप कर्म गण्डिकाये, चित्रान्तर गण्डिकाये, उमपिणी गण्डिकाये, अवपिणी गण्डिकाये, देव, मनुष्य, तिर्यच और नरक आदि से सम्बन्धित गण्डिकार्य आदि ।' __ मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग बारहवे दृष्टिवाद के अन्तर्गत थे। वह अग विच्छिन्न हो चुका है, अत वे अनुयोग भी आज अप्राप्य है। मूल प्रथमानुयोग म्थविर आर्यकालक के समय भी प्राप्त नही था, जो राजा शालिवाहन के समकालीन य, अत आर्यकालक ने मुलप्रथमानुयोग मे से जो इतिवृत्त प्राप्त हुआ उसके आधार मे नवीन प्रयमानुयोग का निर्माण किया । 'बसुदेव हिण्डी', आवश्यक चूणि — आवश्यक मृत गदि जनुयोगद्वार की हारिभद्रीय वृत्ति७ मे जो प्रथमानुयोग का उल्लेख हुआ है वह ग लत चित प्रथमानुयोग का होना चाहिए और आवश्यक नियुक्ति मे प्रसमानुयोग का जो उल्लेख हुआ है वह मूल प्रथमानुयोग का होना चाहिए, ऐसा म प्रभावन पर्गीय पुण्यविजय जी म० का मानना था । पर अत्यन्त परिताप है fजायला नित प्रयमानुयोग भी आज प्राप्त नही हे । एतदर्थ मापा शैली, बान-पति, छन्द जोर विषय आदि की दृष्टि से उसमे क्या-क्या विशेषताएँ थी, यह पटकप मे नरी कहा जा सकता । अनुयोग की हारिमद्रीय वृत्ति ० मे पच महामेघो व को जानने के लिए प्रयमानुयोग का निर्देश किया है । जिससे सम्भव है कि समे न भी जना वृत होगे । आर्यकालक रचित प्रथमानुयोग के आधार से ही भनेकार ने वहावती, आचार्य शीलाइ ने चउपण्ण महापुरिसचरिय और आचार्य हमवन्द्र ने विपप्टिगलाया पुरुष चरित्र की रचना की, ऐसा माना जाता है । ६ पचरय महामाप्य, ना० २ ११३५-८६ , बन्ददहिाटी-प्रथम खण्ट, पत्र २ बर वृणि, भाग १, पृ० १६० : वर हाग्निद्रीय वृत्ति, पत्र १११-२ कोपहार हारिनद्रीय वृत्ति, पत्र ८० -ब-रनिनि, गा० ८१२ विजन र मान्य न्य, पृ० ५२, पुण्यविजयजी वा हागिन्द्रीय दृनि, पत्र ८०
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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