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________________ ६७ महावीर-वचनामृत अर्थ-भले ही कोई नग्न रहे या महीने महीने में भोजन करे, परन्तु यदि वह मायायुक्त है तो उसे बार बार जन्म लेना पड़ेगा। २० तेसि पि न तवो सुद्धो निक्खंता जे महाकुला । जं ने वन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेज्जए॥ (सूत्रकृतांग ८.२४) अर्थ--महान् कुल में उत्पन्न होकर संन्यास ले लेने से तप नहीं हो जाता; अमली तप वह है जिसे दूसरा कोई जानता नही तथा जो कीत्ति की इच्छा से किया नहीं जाता। २१ न जाइमत्तं न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएणमत्ते। मयाणि सव्वाणि विवज्जंयतो, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥ __ (दशवकालिक १०.१६) अर्थ--जो जाति का अभिमान नहीं करता, रूप का अभिमान नही करता, लाभ का अभिमान नहीं करता, जो ज्ञान का अभिमान नहीं करता; जिस ने सब प्रकार के मद छोड़ दिये है और जो धर्मध्यान मे रत है, वही भिक्षु है। २२ पासंडियलिंगाणि गिहिलिंगाणि य बहुप्पयाराणि । धित्तुं वदंति मूढा लिंगमिणं मोक्खमग्गो ति ॥ २३ ण वि होवि मोक्खमग्गो लिगंज देहणिम्ममा परिहा । लिगं मुइत्तु दंसणणाणचरित्ताणि सेवंति ॥ (समयसार ४३०-१)
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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