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________________ महावीर निर्वाण और उसके पश्चात् ५७ समय काशी-कोशल के नौ मल्ल और नौ लिच्छवि जो अठारह गणराजा कहलाते थे, मौजूद थे ; उन्होंने इस शुभ अवसर पर सर्वत्र दीपक जलाकर महान् उत्सव मनाया । बात की बात मे महावीर-निर्वाण की चर्चा सर्वत्र फैल गई। भुवन-प्रदीप मंसार से सदा के लिये बुझ गया; किसी ने कहा संसार की एक दिव्य विभूति उठ गई है, किसी ने कहा अब दुर्बलों का मित्र कोई नही रहा, दुनिया का तारनहार आज चल बसा है, किसी ने कहा संसार आज शोभाविहीन हो गया है, शून्य हो गया है, किसी ने कहा कि श्रमण भगवान् आज कूच कर गये है तो क्या, वे हमारे लिये बहुत कुछ छोड़ गये है, बहुत कुछ कर गये हैं, उन के उपदेशो को आगे बढ़ाने का काम हम करेंगे, उन के झडे को लेकर हम आगे बढ़ेगे, दुनिया को सत्पथ प्रदर्शन करने की जिम्मेवारी अब हमारे ऊपर है। __ महावीर को निर्वाण गये आज लगभग अढ़ाई हज़ार वर्ष बीत गये । इस लंबे समय के इतिहास से पता लगता है कि इस बीच में बड़ी बड़ी कान्तियाँ हुई, परिवर्तन हुए, बडे बडे युगप्रवर्तकों का जन्म हुआ, जिन्हों ने समाज को इधर-उधर से हटाकर केन्द्र-स्थान मे लाकर रखने का भागीरथ प्रयत्न किया परन्तु खेल के मैदान मे इधर-उधर घूमने-फिरनेवाली फुटबॉल के समान समाज अपने केन्द्रस्थल मे कभी नही टिका । बुद्ध ने कायक्लेश और सुखभोग इन दोनों चरम पथों को घातक समझकर मध्यममार्ग का उपदेश दिया, परन्तु आगे चलकर उन के इस सुवर्ण सिद्धांत का भी दुरुपयोग हुआ और बौद्ध भिक्षुप्रो में काफी शिथिलाचार बढ़ गया। १. कल्पसूत्र ५.१२२-८ १० बौद्ध भिक्षुत्रों का उपहास करते हुए जैन लेखकों ने लिखा है मृद्वी शय्या प्रातरुत्थाय पेया। भक्तं मध्ये पानकं चापराले। द्राक्षाखंडं शर्करा चार्धरात्रे । मोक्षश्चान्ते शाक्यपुत्रेण दृष्टः । अर्थात् मृदु शय्या, सुबह उठकर पेय ग्रहण करना, मध्याह्न में भात
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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