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________________ स्त्रियों का उच्च स्थान ३५ बुद्ध ने स्त्रियों के प्रति काफी सम्मान का प्रदर्शन किया है। ऐसी दशा में महावीर ने चतुर्विध सघ में स्त्रियों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था । प्राचीन जैन शास्त्रो मे सैकडो महिलाओ के नाम मिलते है जिन्हो ने महावीर की धर्मकथा सुनकर आत्मकल्याण किया ।" चन्दनबाला, जिसे कौशाबी के सेठ ने बाजार से खरीदा था और सेठ की स्त्री ने जिस का सिर उस्तरे से मुंडवाकर और पैरो मे बेडियाँ डालकर एक घर मे बन्दकर दिया था, महावीर की प्रथम शिष्या और उन के भिक्षुणी सघ की अधिष्ठात्री थी । 14 इसी प्रकार राजीमती ने अपने सयम और त्याग द्वारा जो अपने चरित्र की उज्वलता का परिचय दिया है, वह किसी भी पुरुष के लिये स्पृहणीय है । ससार के सुखो का त्यागकर अरिष्टनेमि के पदचिह्नों का अनुगमन करना तथा स्वचरित्र से स्खलित होते हुए अरिष्टनेमि के भ्राता रथनेमि को सयम में स्थिर रखना यह राजीमती जैसी वीरागना का ही काम था । " जैन ग्रन्थो मे स्त्री- रत्न चक्रवर्ती के चौदह रत्नो मे से एक माना गया है, " तथा यह कहा गया है कि जैल, अग्नि, चोर-डाकू, दुष्काल-जन्य आदि सकट उपस्थित होने पर सर्वप्रथम स्त्री की रक्षा करनी चाहिये ।' चेलना राजगृह के राजा श्रेणिक की रानी थी। एक बार महावीर के दर्शन करके लौटते समय उस ने रास्ते मे तप करते हुए एक साधु को देखा। वह घर आकर रात को सो गई । सयोगवश सोते सोते उस का हाथ पलंग के नीचे लटक गया और ठढ के मारे सुन्न हो गया। रानी की जब आँख खुली तो उस के शरीर मे प्रसह्य वेदना थी। उस ५७. ५८ के मुंह से अचानक निकल पडा देखो अन्तगड ५, ७, ८, नायाधम्मकहा; मूलाचार ४.१६६ ५५ कल्पसूत्र ५.१३५ ५६ उत्तराध्ययन २२ 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ३. ६७ बृहत्कल्प भाष्य ४.४३४६ ५७ ५८
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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