SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ महावीर वर्षमान बात नही उस के लिये कठोर साधना की आवश्यकता होती है। काम-भोगों का परित्यागकर, वस्तुतत्त्व को ठीक ठीक समझकर संयम-पथ पर दृढ़तापूर्वक डटे रहने से ही कल्याण-मार्ग की प्राप्ति हो सकती है। दूसरे शब्दों में, संयम का अर्थ है अपनी इच्छाओं पर अंकुश रखना, अपना सुख त्यागकर दूसरों को सुख पहुँचाना, स्वयं शोषित होना--कष्ट सहन करना, परन्तु दूसरों को कष्ट न होने देना। इसीलिये संयम के साथ तप और त्याग की आवश्यकता बताई है । महावीर ने अनेक बार कहा है कि नग्न रहने से, भूखे रहने से, पंचाग्नि तप तपने से तप नहीं होता, तप होता है ज्ञानपूर्वक आचरण करने से। किसी वस्तु की प्राप्ति न होने के कारण उस की ओर से उपेक्षित हो जाने को त्याग नही कहते, सच्चा त्याग वह है कि मनुष्य सुन्दर और प्रिय भोगों को पाकर भी उन की ओर से पीठ फेर लेता है, उन्हें धता बता देता है।३ बौद्धों के मज्झिमनिकाय मे वैदेहिका नामक एक सेठानी की कथा आती है-अपने शांत स्वभाव और नम्रता के कारण वैदेहिका नगर भर में प्रसिद्ध हो गई थी। उसकी काली नाम की एक दासी थी। दासी ने सोचा कि मैं अपनी सेठानी का सब काम ठीक समय पर करती हूँ, अतएव वह शांत रहती है, और उसे गुस्सा करने का मौक़ा नही मिलता । एक दिन दासी अपनी सेठानी की परीक्षा करने के लिये देर से उठी। सेठानी गुस्सा होकर बोली “तू देर से क्यों उठी ?" और उसे बहुत डाँटने लगी। काली ने सोचा कि सेठानी को गुस्सा तो जरूर आता है, परन्तु वह लोगों को अपना असली स्वरूप नही दिखाती। अगले दिन फिर दासी देर से सोकर उठी । सेठानी को बहुत क्रोध आया और उस ने दरवाजे की छड़ निकालकर उस के सिर में इतने ज़ोर से मारी कि उस का सिर फट गया और उस मे से लहू बहने लगा। सब लोग इकट्ठे हो गये और उस ३२ वही, ४.१० ५ दशवकालिक २.२-३
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy