SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७ यो जार सीहा मुनि ने अबुलाय लावो । वी म्हारी पीड़ा सूदुःखी होयर चिन्ता कर रखा है। प्रभु महावीर रीअाज्ञा पात्र श्रमण सोहा मुनि कने गया पर वान कह्यो-धर्माचार्य भगवान महावीर प्रापन वुलावै है। सीहा मनि प्रभु रा चरणां में पांच'र वंदना करी । महावीर कमजोर सरीर नै देख वो उदास हो'र ऊभा रेयग्या । महावीर गेल्या-सीहा ! तूं चिन्ता मत कर । तेजोलेस्था रै प्रभाव सू म्हूं मरण पाळो कोनी । म्ह दीरघकाळ ताई इणीज पृथ्वी पर मोरु विचरण कल्ला ।पा बात सुण र सोहा अणगार वोल्या-भगवन ! म्हां भी प्रोईज चावां । आप किरपा कर बतायो के ई रोग रो काई इलाज है? प्रभु वोल्या-मेढिया गांव में रेवती गाथापत्नी रे कनै ई रोग ने दूर करण री सोखध है। वी कुम्हडे सूवरिणयोड़ी पोखध म्हार खातरइज त्यार करी है। पण अमण प्रापणं खातर त्यार करयोड़ी कोई चीज लेवे कोनी-इण सूवा तो म्हारे कळपै कोनी पण टूजी मोखब बीजोरापाक किणी दूजा मतलव सूवणाई है । थां जाय ने वी मूवीजोरापाक री मांग करो। वी दवा रे उपयोग सूपा बीमारी ठीक हुय जावै ना। भगवान रोपा बात सुण सोहा मुनि रेवती र घर गया पर वी सूवीजोरापाक री मांग करी । सुद्धोखध रो दान देयर रेवती भापणो मिनस्व जमारो सफळ करियो। वों दवा रै उपयोग सू महावीर री तबियत ठीक हुयगी पर वा पेला री भांत सुख सं विचरण करण लागा।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy