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________________ ८१ स्कन्दक फेरु दूजो प्रश्न पूछियो - भते ! किसा मरण सू जनम-मरण रा बन्धरण टूटै अर किसा सू ं वधै ? भगवान उत्तर दियो - भरण दो भांत राहुवै - बाळ मरण अर पंडित मरण | बाळ मरण सूं संसार वधै अर पंडित मरण सू संसार घटै । क्रोध, लोभ, मोह आदि भावां सूं असमाधि सूरौं मरणो वाळमरण है अर सांत भाव सूं मरणो पडित मरण है । ज्ञान पूर्वक समाधिपूर्वक बारमो बरस : वाणिज गांव सू' विहार कर' र प्रभु ब्राह्मणकुण्ड श्राया श्रर वहुसाळ चैत्य मे विराजिया । ग्रठे अणगार जमालि महावीर सू अलग विचरवा री आज्ञा मांगी। परण महावीर की नीं बोलिया । महावीर ने मौन देख वो पांच सौ साधुवां सागै स्वतन्त्र विहार करण खातर निकलग्यो । वठा सूळ गांव-गांवा विचरण करता हुया, लोगा री संकावां रो समाधान करता हुया प्रभु चौमासो राजगृही में पूरो करियो । तेरमो बरस : राजगृह सू विहार कर' र महावीर चम्पापुर पधारिया अर पूर्णभद्र उद्यान में विराजिया । चम्पा रो राजा कोरिणक भगवान ₹ आवरण री बात सुरण बड़ी सज-धज रे सागै वन्दरण करण नै आयौ । भगवान महावीर री देसना सुरण कैई लोग मुनि धरम अर श्रावक वरत अङ्गीकार करिया । चवदमो बरस : चम्पा भगवान विदेह कांनी विहार करियो । काकन्दी नगरी में गाथापति खेमक श्रर धृतिधर प्रभु रे कनै दीक्षा श्रङ्गीकार करी | मिथिला में चौमासो पूरो कर विहार करतां भगवान पाछा
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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