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________________ ७८ संकट री घडी में वी चतुराई सू काम लियो । दुत लारै चंडप्रद्योत नै वी संदैसो मोकल्यो के ग्राप जिण उद्देश्य सूअठ पधारिया हो, उण रै अनुकूल समय कोनी। राजा रै देवलोक सू सगळो राजपरिवार इण वगत दुखी है । आप अनुकूल समय देख'र पाछा प्रावो । राणो प्रापरी बात मान लैला। श्रो संदेसो सुण चंडप्रद्योत सोच्यो-राणी कठ जाण पाळी तो है नौं । राजा री मृत्यु रो सोग खतम हुवण पर वा न्हारी बात मान लै ला । आ सोच चरप्रद्योत बिगर युद्ध करियां अवंती जावण री त्यारिया करण लागो। इणीज समय भगवान महावीर धरम दसना देता हुया कौसाम्बी पधारिया। मृगावती नै प्रभु रै आवण रीठा पड़ी तो वा उणां रा दरसण करण आई। चंडप्रद्योत पण भगवान रै समवसरण में देसना सुणवा आयो । प्रभु देसना देय र्या हा-मिनख रो जीवन बेवती नदी रै जळ री दाई अस्थिर अर चंचळ है । धन, दौलत, जोवन, सक्ति सब छणिक है । काम-भोग री इच्छावां अनन्त है । उणां सू कदै तरपति नी हुवै । काम वासना रै दळदळ में फंसियोड़ा जीवां री हमेस दुरगति हुवं । आपणी इच्छावां पर अकुस राखण आळो मिनख इज सांसारिक दुखाँ सूमुक्त हुय सके । प्रभु रै उपदेसां सूप्रभावित हुय'र राणी मृगावती बोलीम्हारै दीक्षा लेवण रा भाव है। पण दीक्षा लेवण सूपैला म्है अठं प्रायोडा राजा चंड प्रद्योत सू आपण अपराध खातर माफी मांगू है। क्यू के शील धरम री रक्षा खातर इणा सूछळ कपट रो विवहार करियो अर चालाकी सू काम लियो। - मृगावती री आ बात सण चंडप्रद्योत लाजां मरग्यो। वीं रो हिरदय बदळग्यो । वो कैण लाग्यो-बैन ! म्हनै माफ करदे । थे
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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