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________________ के दिन भिक्षा ले वरण नै प्रभू धन्ना सेठ रै घरै गया । वठे राजकंवरी चन्दणबाळा तीन दिन री भूखी-प्यासी छाजळे में उड़द रा बाकुळा लियां देहरी में ऊभी-ऊभी मुनिराज नै आहार देवा री शुद्ध भावना भाय री ही (सेठाणी मूळा ईर्ष्यावश चन्दन बाळा रा केस कतराय, हथकडियां अर बेड़ियां पैराय, उणनै भूवार में बंद कर राखी ही।) प्रभु महावीर नै भिक्षा खातर आवतां देख वा घरणी राजी हुई । वीको रू-रू खुमीऊ भरग्यो । अभिग्रह री सगळी वातां मिल री ही। बस, एक बात री कमी ही। वीरी ऑख्यां में आंसू नी हा । आ कमी देख आयोड़ा महावीर बिना अन्न-पाणी लियां पाछा फिरग्या। आपणै बारण आयोड़ा महात्मा नै खाली हाथ जावता देख चन्दणा रो जीव उदास व्हैग्यो । वीरी खुसियां पर पाणी फिरग्यो । वा सोवरण लागी-- म्हूं कितरी अभागण हूं। संसार-समुद्र सू तारबा आळा प्रभु म्हनै मझधार में छोड़'र चल्याग्या । इण मुसीबत मे नाता-रिस्ता आळा लोगा तो म्हनै बिसराय दीवी ही । म्हूं तो प्रभु महावीर र आसरै ईज दिन काट री ही । म्हनै तो पूरो भरोसो हो के प्रभु म्हारै हाथां सूौं आहार ले'र म्हारो उद्धार करैला । पण हाय ! इस खोटा समय मे भगवान भी म्हनै भूलाय दी । आ सोचतां-सोचतां वींकी आंख्यां पासूां सभीजगी। महावीर पाछे मुड र देखियो। चदन बाळा री आंख्यां में प्रांसू हा । महावीर नै भिक्षा खातर पाछा मुड़ता देख, वीरी उदासी मिटगी। ओठां पर मुळक आयगी । सै बातां मिलती देख महावीर चन्दण बाळा रै हाथा सू पाहार लियो। इणरै सागै इ चन्दणा रो सकट टळग्यो। महावीर नारी जाति रो उद्धार करणो चावता हा । समाज में नारी नै इज्जत देवरण खातरईज महावीर इसो कठोर अभिग्रह धारियो । प्रभु महावीर कयौ-पुरुष री भांत नारी नै भी साधना रे
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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