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________________ महावीर री इण क्षमा भावना नै देख संगम लाजां मरग्यो अर मन ही मन खुदरी आत्मा नै धिक्कारबा लाग्यो। कुलथ सूपारणो : गांव-गांव विचरण करता हुया महावीर वैसाळी पधारिया। चौमासो अठेइ पूरो करियो । पारणा रै दिन भिक्षा खातर महावीर पूरण सेठ रं घरां गया । द्वार पर महावीर नै ऊभा देख सेठ उणां री उपेक्षा करीअर दासी सू कयो के वारै भिक्षु ऊभो है। वीन भिक्षा देय दे। दासी एक कुडछो भर'. कुळथ प्रभु ने दिया । महावीर उणा कुळथ सूचातुर्मासिक तप रो पारणो कियो। बारमो बरस : चमरेन्द्र नै सरण : ___ महावीर सुन्सुमारपुर वन खंड में असोक वृक्ष र हेठ ध्यान लीन हुया। एकदा चमरेन्द्र (अमुरकुमागं रो इन्द्र) आपण ज्ञानबळ सूदेखियो के-इरण संसार मे म्हारै सूधनवान अर वळवान कुरण है । बीनै इन्द्र दिव्य भोग भोगतो निजर पायो । यो देख चमरेन्द्र रो किरोध बधग्यो । वी आपणै साथी असुरकुमारां नै पूछियोओ विवेकहीन घमण्डी देव कुग है ? असुर कुमार व यी के ओ तो सौधर्मेन्द्र देव है, पर आपणे सूबत्ती ताकतवर है । ईसूछेड़छाड़ करणो प्रापणी जान जोखम मे नाकरणी है। ___ चमरेन्द्र असुरकुमारां री मजाक वणावतां बोलियो-था सव कायर हो, म्हूं किणी नै म्हारै माथा पर बैठ्यो देख नी सकू। अबार वीकी टांग पकड़'र वीं ने आपण पासण सूकाई देवलोक सू हेठे पटक टूला । चमरेन्द्र रा रोस भरिया सवद सूण देवराज इन्द्र नै परण रोस मायग्यो । वां सिंहासरण पर बैठ्या-बैठ्या वज्र हाथ में लेयर
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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