SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१. नेमिनाथ : - इक्कीसमां तीर्थकर श्री नमिनाथ हुया। आपरो लांछण नीलकमळ, जनम स्थान मिथिला, पिता रो नाम महाराज विजय पर माता रो नाम महाराणी वप्रा हो। आपरो निर्वाण स्थळ सम्मेदसिखर मानीजै । आपरै तीरथकाळ में इज कौसाम्बी नगरी में जयसेन नाम रा चक्रवर्ती सम्राट हुया। २२. अरिष्टनेमि : बाइसमा तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि हुया। नैमिनाथ पण कहीजै। आपरो जनम सौरीपुर में हुयो। आपरै पिता रो नाम समुद्रविजय पर माता रो शिवादेवी हो । नेमिनाथ यदुवंसी हा । श्रीकृष्ण समुद्रबिजय रै छोटा भाई वासुदेव रा पुत्र हा । नेमिनाथ रो लांछरण शङ्ख है। नेमिनाथ ब्याव नी करणो चावता पण श्रीकृष्ण अर प्रापणी भाभी सत्यभामा व रूक्मणी रै घणे आग्रह करण सू आप ब्याव करण नै राजी हुया । श्रीकृष्ण जूनागढ़ रै राजा उग्रसेन री रूपाळी कन्या राजुळ सू आपरी सगाई पक्की करी। सावण सुद छठ रै दिन विवाह रो मोरत प्रायो। बरात चढी । वींद वेस में राजकुवर नेमि खूब सजायाग्या । बारात रवाना व्हैय नै उग्रसेन रै महला कनै पहुँची के एकाएक नेमिकुवर पसुवां रो हाको सुरिणयो। वां सारथि नै पूछियो-ओ पसुवां रो करुण क्रन्दन कठा सूप्रावै ? सारथि कयो-राजकुवर आपरै ब्याव री खुसी में बहोत बड़ी जीमणवार हुवैली, वीं में इस पसुवां री बळि दी जावैली। पसुवां री बळि देवण री बात सुण'र नेमिकुमार रो कोमळ काळजो पसीजग्यो। वरणा सारथि नै आज्ञा दीवी कै-जार से पसु-पक्षियां नै बाड़े सूवार काढ दो। मिनख नै जियां आपणो जीव वाल्हो लागै उणीज भांत जिनावरां नै परण प्रापाशो जीव वाल्हो है। म्हारै ब्याव रै मौक हजारां-लाखां निरपराध भोला
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy