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________________ १४६ एवं खु नारिणरणो सारं, जन हिंसइ किचरण । सूत्रकृतांग १/११/१०/ किणो प्राणी री हिंसा नी करणा में इज ज्ञानी हुवरण रो सार है। आय तुले पयासु। सूत्र १/११/३ सगळा प्रारिणयां रे प्रति प्रातम तुल्य भाव राखणो चाइजै । समया सव्व भूएसु, सत्त मित्त सु वा जगे। उत्त० १६/२५ शत्रु अथवा मित्र सगळा पर समभाव री दृष्टि राखपी अहिंसा है। मेत्ति भूएसु कप्पए। उत्त० ६/२/ सगळा जीवां रै सागै मित्रता रो भाव राखो। तुमंसिनाम सच्चेव, जं हतवं ति मन्नसि । प्राचा. ५/५/ जिणन तू मारणो चावै, वो तू इज है । अर्थात् थारी अर उणरी आतमा एक समान है। से हु पन्नारणमंते बुद्ध आरभोवरए। आचा. ४।४ जो हिंसात्मक प्रवृत्तियां सूअळगो है, वोइज बुद्ध-ज्ञानी है । सव्वपाणा न हीलियम्वा, निदियव्या। प्रश्नव्याकरण २।११
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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