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________________ १४७ - इसा मूळ प्राकृत अंश राजस्थानी अनुवाद रै साग दिया जाय रह्या है, जं जीवन पर समाज नै निर्मळ, पवित्र, सयमशील अर आतम'पारण वरणावरण में उपयोगी है। १. धर्म धम्मो मंगल मुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवावि त नमंसन्ति, जस्स धम्मे सयामणो । दशकालिक सूत्र ११ धरम उत्कृष्ट मंगळ है । वो अहिंसा, संयम अर तप रूप है। जिण साधक रो मन हमेशा इण धरम साधना में रमण कर, वीं ने देवता पण नमस्कार करें। एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए । __ स्थानांग सूत्र ११११४०। घरम इज एक इसो पवित्र अनुष्ठान है, जिणसू श्रातमा रो सुद्धिकरण हुवे। सयय मढे धम्म नाभिजाणइ । आचारांग सूत्र ३११ सदा विपय-वासना में मगन रैवा पाळो मिनख (मढ़) धरम रै तत्त्व नै नी जाण सके। समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए प्राचरांग सूत्र १८३ आर्य महापुरुसां समभाव नै धरम कह यो है। अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्ततं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साह ।। भगवती सूत्र १।२।।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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