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________________ तामसिक, राग-द्वेष सू भरियोड़ी उत्तेजित वस्तुवा रो सेवन नीं कर'र स्वास्थ्य प्रद, सात्विक भोजन, पाणी, वस्त्र, पात्र आदि रो ग्रहण (उपयोग) करणो एपणा समिति है। रोजमर्रा काम प्राण पाळी चीजो रे लेण-देश, रखरखाव आदि में सावधानी राखणी आदान निक्षेपण समिति है। किणी जीव या प्राण नै नी मारणो यो अहिंसा गे निषेधास्मक रूप है । अहिंसा रो विधेयात्मक रूप है-लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों में रस लेगो, पातमहितकारी क्रियावां करणी, प्राणीमातर नै प्रातमवत समझशो, उरणांमें किणी भात री भेदबुद्धि नी राखरणी, मब साग उदारता रो वैवार करणो पर नितहमेस मैत्रीभाव रो चिन्तन करो। समतामूलक समाज अहिंसा सिद्धान्त रो विधायक तत्त्व है समता, विषमता रो प्रभाव । दुनियां मे कोई छोटो-बड़ो कोनी । सगळा समान है। समतावाद र इण सिद्धान्त र महावीर जातिभेद, वर्णभेद, रंगभेद नीति रो खडन करियो पर बतायो के-मिनख जनम या जात सूबड़ो कोनी । वी नै बड़ो बगावै उरगरा गुण, उरणरा कर्म। महावीर कह्यो-सिर मुडाणे सू कोई श्रमण नी वण जावै, ओंकार रो नाम लेणै सू कोई वामण, वन मे निवास करण सूकोई मुनि अर कुसचीर धारण करण सू कोई तापस नी वण जावै । पण समभाव राखरण सूश्रमण, ब्रह्मचर्य सूब्राह्मण, ज्ञान सू मुनि पर तपाराधना सूतापस वणै । धर्म, सम्प्रदाय, अर जाति रै नाम पर आज विश्व में घणो तनाव पर भेदभाव है। महावीर र इण सिद्धांत नै.आज सांचा अरथां सूअपणा लियो जावै तो प्रो विश्व सगळा खातर स्वर्ग बण जावै।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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