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________________ १२६ क्रोध में प्राय पुत्र-पुत्री आदि पारिवारिक सदस्यांने मारणो, पीटगो, सरदी-गरमी में उघाड़े सरीर ऊभोकर देणो, आ हिंसा क्रोध निमित्तक हिसा कहीजै । जाति, कुळ, बळ रूप, तप, ऐश्वर्य, प्रज्ञा आदि में खुद नै वड़ो मानर घमण्ड करगो, दूजां नै नीचो • समझणो, उरणारो अपमान करणो मान निमित्तक हिंसा है। ऊपर सूसभ्य अर शिप्ट वण'र छिप्योड़े रूप सूपाप करणो, दूजां नै ठगणो, कपट करणो, उरणां रै गुप्त भेदां सूबेजो फायदो उठाणो मायानिमित्तक हिसा है। ऊपर सूभोग रै प्रति उदानीनता रो भाव धारर कामभोगां री पूरति खातर, विपय भोगां री चीजां रो संग्रह करणो, उरण संरक्षण री चिन्ता करणी लोभनिमित्तक हिंसा है। जैन धरम में प्रातमघात करणो बहुत बड़ी हिसा है । घणकरा लोग कैव के श्रापणी आत्मा रो घात करण में हिंसा कोनी, पण पा बात गलत है। आतमघात करगियो मिनख भय, क्रोध, अपमान, लोभ, राग आदि भावां सूप्रेरित हुय'र आतमघात करै । अं कारण हिंसा रा ईज है । आतमघाती मिनख में प्रातम विसवास पर कस्ट सहिप्णुता नी हुवे । कायरता, भय, दीनता, आतमविसवास रो कमी आदि अवगुण, सद्गुरणां रो नास करै । इण वास्तै आतमघात महापाप अर हिसा मानीजै । पण साधक जद काळ नै नैडो जारण समभाव पूर्वक अनशन व्रत अंगीकर कर'र आतमसरूप मे रमण करता हुयो मरण प्राप्त करे तो वो आतमधात नी कहीजे । श्रो समाधि मरण कहीजै । साधना री दृष्टि सूईरो घणो महत्त्व है । मिनख आजीविका, आमोद-प्रमोद पर सवाद रै वसीभून हुय'र दारू, मांस, चमड़ा, दांत आदि सूवरणी चीजां रो उपयोग करै । जैन दृष्टि सूआ भी हिसा मानीजै । - रूढ़िवादी लोग लौकिक मान-मनौतियां पूरी करण खातर देवी-देवता रै सामै अनेक जीवां री बळि देव । देवी-भक्ति पर
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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