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________________ १२२ आभ्यन्तर तप रा छह भेद : प्राभ्यन्तर रा छह भेद हुगे-प्रायश्चित, विनय, नैयावत्या, स्वाध्याय, ध्यान पर व्युत्सर्ग। १. प्रायश्चित : प्रायश्चित रो अरथ है-प्रमाद या अणजाण में हुई भूला रे प्रति मन में ग्लानि या पश्चाताप करणो पर उणां नै फेर दुबाग नी करण रो संकल्प लेवणो । इण भांत प्रातम निरीक्षण सू जीवन शुद्ध पर सरळ बणै । २.विनय : विनय रो प्ररथ है नम्रता । प्रापणे सूबड़ा रे प्रति नम्रता पर छोटा र प्रति स्नेह पर वात्सल्य भाव राखणो विनय तप है। विनय सूअहकार टूट पर सदाचार री भावना में बढ़ोतरी हुगे। ३. वैयावृत्य : नैयावृत्य रो अरथ है-सेवा । जो साधक निस्काम भाव सू समाज सेवा पर राष्ट्र सेवा करै वो भी बड़ो तपस्वी मानीजै। जैन आगमां मुजब सेवा करण सूतीर्थङ्कर गोत्र करम री प्राप्ति हुने । सेवा परम धर्म है । इण सूकरमा री निरजरा हुने। ४. स्वाध्याय : __स्वाध्याय रोप्ररथ है-विधिपूर्वक सत् शास्त्रां रो अध्ययन करणो। अध्ययन में तल्लीन हुवण सू मन एकाग्र हुवै, शुद्ध विचार पावै पर ज्ञान बधै। इण सूज्ञानावरणी करम रो नास हुवे । वाचना, पृच्छता, परिवर्तना, अनूप्रेक्षा, धरमकथा आदि स्वाध्याय रा पांच प्रकार है।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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