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________________ छठा अधिकार ॥६॥ हंता मोहाक्षशत्रूणां त्राता भव्यांगिनां भवात् । कर्ता चिद्धर्मतीर्थानां वीरोऽस्तु तद्गुणाय मे ॥१॥ | भावार्थ-मोह और इंद्रियरूपी शत्रुओंको जीतनेवाले, भव्यजीवोंकी संसारसे रक्षा करनेवाले और धर्मतीर्थके प्रवर्तक ऐसे श्रीमहावीरस्वामी गुणोंकी प्राप्तिमें मेरी सहायता करो। अथानंतर किसीसमय बुद्धिमान् वह नंदराजा भव्यजीवोंसहित धर्म सुननेके लिये। पोष्ठिल मुनीश्वरकी वंदना करनेको जाता हुआ । वहां भक्ति पूर्वक जलादि अष्ट द्रव्यसे | मुनीश्वरकी पूजा कर मस्तक नवाकर धर्म सुननेके लिये उनके चरणोंके पास बैठ गया। पराया हित चाहनेवाला वह मुनि राजाको दश लक्षणवाले धर्मका उपदेश करता हुआ। हे बुद्धिमान् ! तू उत्तमक्षमासे परम धर्मका सेवन कर । उत्तमक्षमा वह है जो दुष्टोंके उपद्रव करने पर कभी धर्मका नाशक क्रोध न उपजे । धर्मके लिये बुद्धिमानोंको मार्दव पालना चाहिये । मार्दव उसे कहते हैं कि मन वचन कायको कोमल करके इन तीनोंकी कठोर Prer.comGroiऊसस
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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