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________________ अ.४ म. वी. साधर्मी भाइयोंसे वात्सल्य ( अत्यंत प्रीति ) करता था और उनके गुणोंसे पु. भा. है रंजायमान होके उन साधर्मियोंके योग्य दान सन्मान करता था । इत्यादि an अनेक तरहके आचरणोंसे धर्मको पालता हुआ व अन्य भव्योंको श्रेष्ठ उपदेशद्वारा । पलवाता हुआ। धर्मादि तीन पुरुषार्थोंकी वृद्धि करनेवाले राज्यको राजनीतिसे पालन १ करता हुआ अपने पुण्यसे पायेहुए भोगोंको भोगता हुआ । इसप्रकार पुण्योदयसे श्रेष्ठ है। । राज्यलक्ष्मीको पाकर श्रेष्ठसुखको देनेवाले धर्मका सेवन करता हुआ । इसलिये हे भन्यो । । यदि तुम भी असली सुखका स्थान चाहते हो तो अति प्रयत्नसे धर्मको धारण करो॥ इसप्रकार श्रीसकलकीर्ति देव विरचित महावीरपुराणमें सिंहादि सात भव और . धर्मकी प्राप्ति कंहनेवाला चौथा अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ४ ॥ : ॥२६॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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