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________________ भा. प्रस्ता. म. वी. जन्ममें विवाह न करके राज्यादि संपदाको तृणके समान तुच्छ समझ विना भोगे कुमारअवस्थामें ही वैरागी होके अपने परके कल्याणनिमित्त तपस्या करनेको वनमें गये। ये महावीर प्रभु जैनियोंके चौवीसवें तीर्थकर हैं। , इस ग्रंथके स्वाध्याय करनेसे मुझे निश्चय है कि कितने ही भव्य यदि मनवचन कायसे इसे पढ़ेंगे तथा दूसरोंको ॥१॥ भी इस ग्रंथका कथन बतलावेंगे तो इस घोरपापी पंचम काल ( कलियुग) में भी पापके कामोंको छोड़ पुण्य कार्योको । करते हुए विदेह क्षेत्रमें जन्म ले अवश्य इच्छित अनंत सुखकां स्थान मोक्ष पावेंगे। हा यह पवित्र श्री महावीरपुराण श्रीमान् सकलकीर्ति देव (आचार्य) का संस्कृत वाणीमें रचा गया है। इसकी अभी तक किसीने भापा टीका तयार नहीं की थी ऐसा तलाश करनेसे मुझे मालूम हुआ। फिर आजकालके धर्मराज्यके प्रवर्तानेवाले श्रीमहावीर प्रभुके पवित्र चरित्रसे संस्कृतवाणीके नहीं जाननेवालोंका बहुत लाभ होना समझ इस पवित्र पुराणका भापानुवाद अपनी तुच्छ बुद्धिसे मूल ग्रंथके अनुसार किया है। उसमें यदि कहीं दृष्टिदोपसे अशु. |द्धियां रहगई हो तो पाठकगण मेरे ऊपर क्षमा करके अवश्य शुद्ध करते हुए स्वाध्याय करेंगे। | इस ग्रंथकी हस्तलिखित १ प्रति मुझे पं० ख्वचंदजी जैनशास्त्रीके द्वारा प्राप्त हुई, इससे उनके उपकारका आभारी होके कोटिशः धन्यवाद देता हूं। इसी तरह दूसरे भी सनन महाशय ग्रंथका उद्धार करानेके लिये ग्रंथकी। प्रतियां भेजकर हमारे कार्यालयको सहायता पहुंचावेंगे ऐसी आशा करता हूं। और अंतमें यह प्रार्थना है कि यदि हमारे पाठकोंको इस ग्रंथके वांचनेसे संतोप हुआ और उत्साहित होके मुझे प्रेरणा की तो मैं इस ग्रंथका मूल संस्कृत भी प्रकाशन कराके पाठकोंके सामने उपस्थित कर सकूँगा। इस प्रकार प्रार्थना करता हुआ इस प्रस्तावनाको समाप्त करता हूं। अलं विशेषु । खत्तरगली हौदावाड़ी जनसमाजका सेवक पो. गिरगांव-वंबई मनोहरलाल जेठ मुदि ५ वार सं० २४४२ ) पाढम (मैनपुरी) निवासी। कन्सन्छन ॥१ ॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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