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________________ 2 . वी. यह पवित्र चरित्र सकलकीर्ति गणीने रचा है इसलिये दोपरहित हे ज्ञानियो ! मुझपर पु. भा. कृपाकर अच्छीतरह शुद्ध करके पढना । इस पवित्र ग्रंथमें मैंने जो कहीं प्रमादसे व अज्ञा- 2 ॥१५५॥ जानतासे असंवद्र कहा हो तथा अक्षर संधि मात्रादि छोड़ दी हों उन सब दोपोंको हे ज्ञानियों! प्रश.. अल्पबुद्धि वाले मेरे इस श्रेष्ठ ग्रंथके उद्धारमें बड़ा भारी साहस ( हिम्मत ) देख क्षमा। करें। जो बुद्धिमान गुणीजनोंको गुणोंमें प्रेम होनेके कारण पढावेंगे स्वाध्याय करावेंगे वे ज्ञानी विषयादिकोंसे त्यागवृद्धि कर केवलज्ञानको थोड़े ही समयमें पासकेंगे। इस पवित्र ग्रंथको इस सारे भारत वर्षमें प्रवर्तानेके लिये जो भव्यपुरुष अपनेलिये लिखेंगे। तथा दूसरोंको भी स्वाध्याय करनेके लिये लिखावेगे वे भव्यात्मा ज्ञानदानसे संसारमें उत्पन्न सवसे उत्तम सुखको पाकर केवलज्ञानी अवश्य होंगे। गुणोंका समुद्र धर्मरत्नकी खानि भन्योंको शरण इंद्र वगैरःसे पूज्य स्वर्ग मोक्षक मूलकारण श्री महावीर स्वामीका यह पवित्र चरित्र इस पृथ्वीपर जवतक कालका अंत हो तब तक इस आर्यखंडमें सबजगह प्रसिद्ध होवे-ऐसी मेरी , जिन प्रभुने स्वर्ग मोक्षका देनेवाला निपि अहिंसामयी श्रेष्ठ धर्म मुनिश्रावको दो तरहका उपदेश किया है, वह धर्म जबतक कालकी हद है तब तक निचयकर रहेगा और अबतक भी प्रवृत्त हो रहा है-जो परम गुखना करनेवाला।से धर्मके व्याख्याता श्री महावीर
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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