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________________ उसी रमणीक मंदिर नामके नगरमें सालंकायन नामका ब्राह्मण रहता था RK उसकी प्यारी स्त्रीका नाम मंदिरा था, उनके वह देव माहेंद्र स्वर्गसे चयकर भारद्वाज हनामका पुत्र हुआ। वह पूर्वजन्मके संसारसे मिथ्याशास्त्रोंके अभ्यासमें लगा रहता था, ॥१०॥ | मिथ्या ज्ञानसे उत्पन्न हुए वैराग्यसे उस भारद्वाजने पूर्वकी तरह त्रिदंडी दीक्षा ली और हिर उस कायक्लेश तपसे देवायुको बांधकर मरगया। उस तपके फलसे पांचवें स्वर्गमें देवर हुआ, वहां पर सात सागरकी आयु और तप करके उपार्जन किये भोगोंको पाया। 2ी वहांसे चयकर खोटे मार्गके प्रवर्तानेसे उपार्जन किये महा पापोंके उदयसे असंख्यात वर्ष निंदनीक त्रस स्थावर योनियोंमें दुःख पाता हुआ भटकता रहा । आचार्य कहते हैं कि देखो यह पाणी मिथ्यात्वके फलसे अनेक प्रकारके महान् दुःख भोगता है । अग्निमें पड़ना, हालाहल ( जहर ) का खाना अथवा समुद्रमें डूबकर मरः जाना। तो अच्छा लेकिन मिथ्यात्वसहित जीना अच्छा नहीं है । सिंह, वैरी, चोर, सर्प और विच्छू इन प्राणोंके नाशक दुष्टजीवोंकी संगति करना तो किसी तरह ठीक है परंतु । मिथ्या दृष्टि जीवोंके साथ संबंध रखना किसी तरह भी अच्छा नहीं है क्योंकि वे दुष्ट तो एक जन्ममें दुःख दे सकते हैं-परंतु मिथ्यात्वके परिणामसे सैकड़ों जन्मतक दुःख है। ॥१०॥ हैसहने पड़ते हैं । बुद्धिमान् सत्पुरुप ऐसा कहते हैं तराजूमें एक तरफ तो हिंसादि पापों।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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