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________________ उसी समय श्री गौतम गणधरके अत्यंत परिणामोंकी शुद्धिसे सात महान ऋद्धियां प्रगट होती हुई । हे प्राणियो ! इस संसारमें मनकी शुद्धि ही सज्जनोंको सव मनोवांछित फलोंकी देनेवाली है, जिस मनशुद्धिसे ही आधे क्षणमें केवलज्ञानरूपी संपदा मिल हो जाती है ॥ श्रावण कृष्ण, तृतीयाको सबेरेके समय श्रीमहावीर स्वामीके तत्वोपदेशंसे हमनकी शुद्धि होनेसे इस इंद्रभूति गणधरके चित्तमें सव अंगपूर्वके पद अर्थरूपसे परिणमन / करते हुए। उसके बाद ज्ञानावरण कर्मके कुछ क्षय होनेसे दिनके पिछले पहर बुद्धिमें सब अंग पूर्व प्रगट होनेसे मति आदि चार ज्ञानवाले हुए वे इंद्रभूति अपनी तीक्ष्णबुद्धिसे सव अंगोंरूप शास्त्रोंकी रचना सब भव्योंका उपकार होनेके लिये रातके | IST पिछले भागमें पद वाक्य ग्रंथ रूपसे करते हुए, जिससे कि आगेको धर्मकी प्रवृत्ति होवे इस प्रकार धर्मके फलसे श्री गौतम गणधर देवोंसे पूर्जित सव द्वादशांग शास्त्रको हरचनेवाले सब मुनियों में मुख्य होते हुए। ऐसा जानकरं हे बुद्धिमानो! तुम भी अपनी ॥ इष्टसिद्धिकेलिये मनको शुद्धकर उत्तम धर्मको करो। इस प्रकार श्री सकलकीर्तिदेवविरचित महावीरपुराणमें महावीर भगवान्के धर्मोपदेशको कहनेवाला अठारहवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १८ ॥ सससससससररर -
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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