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________________ पापसे डरनेवाले व्रतियोंको व्रतोंके पालनेके लिये तथा पापोंके नाशके लिये अदरक र आदि अनंत जीवोंवाले कंदोंको, क्रीड़े लगे हुए फल आदिको, फूलको तथा विप व भिष्टाके समान सब अभक्षोंको सब तरह से त्याग करना चाहिये । घर खेत बाजार ॥१३५॥ मुहल्ले आदिमें भी जानेका प्रमाण प्रतिदिन कर लेना वह देशावकाशिक शिक्षाव्रत है। खोटे ध्यान और खोटी लेश्याओंको छोड़कर जो हमेशा दिनमें तीन वार । सामायिक ( जाप ) किया जाता है वह सामायिक शिक्षाबत है । जो अष्टमी और चौद-है। 18 सको सव आरंभ छोड़कर नियमसे उपवास (आहारका त्याग) किया जाता है वह ? ४ प्रोपधोपवास शिक्षाव्रत है । जो प्रतिदिन भक्तिसहित निर्दोष आहारादि चार प्रकारका 12 दान विधिसे मुनियोंको दिया जाता है वह अतिथिसंविभाग नामका चौथा शिक्षाव्रत । है । इस प्रकार मन वचन कायकी शुद्धिसे अतीचार (दोप) रहित इन पांचों व्रतोंको । जो भव्य जीव पालते हैं उनके उत्तम दूसरी व्रतपतिमा होती है। अणुव्रत धारियोंको I मरणके समय आहार और कपाय वगैरको छोड़कर मुनिके चारित्रको धारण कर श्रेष्ठ, पदवी प्राप्तिके लिये सल्लेखनाव्रत प्रेमसे पालना चाहिये। तीसरी सामायिक प्रतिमा है और चौथी प्रोपोपवास नामकी प्रतिमा है। ॥१३॥ ॥ फल वीज पत्र जल वगैरः जो जीवोंसहित सचित्त हैं उनको दयाधर्म पालनेके लिये 2002
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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