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________________ सत्रहवां अधिकार ॥ १७॥ वंदे जगत्रयीनाथं केवलश्रीविभूषितम् । विश्वतत्त्वार्थवक्तारं वीरेशं विश्वबांधवम् ॥१॥ अर्थ-तीन जगतके स्वामी केवल ज्ञानलक्ष्मीसे शोभायमान सब तत्वार्थीको कहहनेवाले और सव भव्योंके वंधु ऐसे श्रीमहावीर स्वामीको मैं नमस्कार करता हूं। हा अथानंतर वै सात तत्व पुण्य और पाप इन दोनोंसहित मिलकर नौ पदार्थ कहे जाते हैं वे पदार्थ सम्यक्त्व और ज्ञानके कारण हैं। उसके बाद वे तीर्थेश सर्वज्ञ महावीर शाप्रभु भव्योंके संवेग (संसारसे भय ) होनेकेलिये पुण्यपापके कारणोंको और फलोंको. ऐसे कहते हुए । एकांत आदि पांच मिथ्यात्व, दुष्ट कपाय, असंयम, निंदनीक सब प्रमाद, कुटिलयोग, आर्त रौद्ररूप खोटे ध्यान, कृष्णादि तीन खोटी लेशायें, तीन शल्य मिथ्या गुरु देव आदिका सेवन, धर्मको रोकना, पापका उपदेश देना, इन सब कारणोंसे तथा अन्य भी खराब आचरणोंसे उत्कृष्ट पाप होता है। Nilu१२१॥ पराई स्त्री धन कपड़े वगैरमें लंपटता ( अधिक चांह ) वाला रागसे दूषित
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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