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________________ समन् पर्वतकी गुफामेंसे निकली प्रतिध्वनिके समान कल्याण करनेवाली दिव्य ध्वनि ( वाणी) निकलती हुई । ओहो तीथराजोंकी यह योगजन्य ऊँची शक्ति कि जिससे जगत्के । भाभव्योंको महान उपकार पहुँचाया जाता है। Toll हे गौतम इस संसारमें बुद्धिमान लोग जिसे यथार्थ सत्य कहते हैं वह सर्वज्ञकर कहे हुए पदार्थोंका स्वरूप ही है यह निश्चय समझ । जीव दो प्रकारके हैं एक मुक्त Ma(सिद्ध ) दूसरे संसारी । मुक्तोंमें तो कुछ भेद नहीं है संसारियोंमें बहुतसे भेद हैं। आठ कमासे रहित और आठ गुणोंसे शोभित एक स्वरूप समान सुखवाले सब दुःखोंसे हैं Kारहित लोकके शिखरपर विराजमान अनंत वाधारहित ज्ञान शरीरवाले अनुपम-ऐसे सिद्ध है. जीव जानने । संसारी जीवोंके दो भेद हैं स्थावर और त्रस । अथवा एकेंद्री विकलेंद्री। पंचेंद्री-इसतरह तीन भेद हैं । नरक आदि गतिके भेदसे चार तरहके हैं । इंद्रियोंकी, अपेक्षा एकेंद्री दो इंद्री ते इंद्री चौइंद्री पंचेंद्री-इसतरह पांच भेद अति दयालु जिन भगवान्ने कहे हैं। बस और स्थावरके भेदसे छह तरहके जीव हैं ऐसा अति दयालु जिनेंद्र भगवानने कहा है । इन्हीं छहकायके जीवोंकी रक्षा करनी चाहिये । पृथ्वी आदि पांच स्थावर विकलेंद्रिय पंचेंद्रिय इसतरह जीवोंके सात भेद कहे गये हैं। पांच स्थावर विकलेंद्रिय संज्ञी असंज्ञी-इसतरह आठ जीवोंकी जाति हैं। पांच स्थावर दो इंद्री तेइंद्री تورنتومجمع
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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