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________________ म. वी. मानभंगके डरसे ऐसा मनमें तर्क वितर्क करता हुआ । देखो यह कान्य बहुत कठिन है। पु.भा. इसका अर्थ कुछ भी नहीं मालूम पड़ता इसमें तीन काल कौनसे हो सकते हैं दिनके | अ.१५ १०८ या वर्षके ? अव तीन कालमें उत्पन्न वस्तुको जो जानें वही सर्वज्ञ है वही उस आगमका जाननेवाला हो सकता है । मुझ सरीखा तुच्छ मनुष्य कोई भी नहीं हो सकता। MAIL छह द्रव्य कोंन होते हैं किस शास्त्रमें कहे गये हैं सब गतियां कौन हैं उनका क्या स्वरूप है ? मैंने पहले नव पदार्थ कभी नहीं सुने उन्हें कौन जान सकता है ? विश्व किसे कहते हैं सबको या तीन लोकको, यह वात मैं नहीं जानता । इस जगह पांच अस्तिकाय कौनसे हैं. इस पृथ्वीमें व्रत कौनसे हैं समिति कौन हैं ज्ञानका स्वरूप कैसा है और उसका फल क्या है । कोनसे सात तत्व हैं कौनसे धर्म हैं सिद्धि वा कार्य निष्पत्तिका ? मार्ग भी अनेक प्रकारका है। स्वरूप क्या है यहां विधि कोंन है उसकर उत्पन्न फल || क्या है छह.जीवनिकाय कोन हैं छह लेश्या कोंन हैं मैंने कहीं नहीं सुनीं। ४। इन सवका लक्षण ( स्वरूप ) मैंने पहले कभी नहीं सुना और न हमारे वेद ? ४/अथवा स्मृतिवगैरः शास्त्रों में ही कहा गया है । ओहो मैं समझता हूं कि इस काव्यमें सब सिद्धांत-समुद्रका दुर्घट ( कठिन ) रहस्य यह बुड्डा मुझसे पूछ रहा है । मेरा मन भी | ॥१०८ ऐसा ही मानता है कि यह काव्य गूढ है इसको सर्वज्ञके तथा उनके शिष्यके विना
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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