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________________ क . धर्ममूर्ति आपको नमस्कार है धर्मोपदेश देनेवाले आपको नमस्कार है धर्मचक्रके हमवानेवाले आपको नमस्कार है । हे जगत्के नाथ इस प्रकार स्तुति नमस्कार भक्ति कर उपार्जित पुण्यसे आपके प्रसादकर आपकी समस्तगुणोंकी राशियां हमको शीघ्र ही ||आपका पद मिलनेके लिये रहें कर्मवैरियोंका नाश करें श्रेष्ठ मृत्यु ( समाधिमरण ) को भी करें। इसतरह जगतके स्वामी श्री महावीरमभुकी स्तुतिकर वारंवार नमस्कार कर और भक्तिसहित चार प्रकारकी इष्ट प्रार्थना कर देवों सहित वे इंद्र उस समय धर्म सुननेके लिये अपने २ कोठोंमें बैठते हुए और दूसरे भी भव्य तथा देवियें हितकी प्राप्तिके लिये जिनेंद्र के सामने बैठती दुई।। इसी अवसरमें वह इंद्र वारह तरहके जीव सम्रहोंको श्रेष्ठधर्मः सुननेकी अभिला-18/1 Hollपासे अपने २ कोठामें बैठा हुआ देख और तीन पहर बीत जानेपर भी अहंतकी धुनी नहीं निकलती हुई देख मनमें विचारने लगा कि किस हेतुसे धुनी निकलेगी। उसके । बाद अपने अवधिज्ञानसे गणधरपदके योग्य किसी.मुनीश्वरको नहीं समझकर बुद्धिमान पहला इंद्र ऐसी चिंता करता हुआ। देखो अचंभेकी बात है कि मुनीशों में कोई ऐसा|| मुनींद्र नहीं है जो अर्हतप्रभुके मुखसे प्रगट हुए सब पदार्थीको एकवार सुनकर द्वादशांगी शाखकी संपूर्ण रचना कर शीघ्र ही गणधरपदवीके योग्य होवे ।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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