SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छन्डन्न्कन्सन्सब्रून्यमान तुम ही हो । मोक्षके मार्गमें ले जानेवाले तुम ही हौ और जगत्का हित करनेसे बंधुरहित । पहाजीवोंके विनाकारण महान् बंधु तुम ही हो । 8 तीनों लोकके अग्रभागका राज्य चाहनेसे लोभियोंमें महान् लोभी तुम ही हो । मुक्तिरूपी स्त्रीकी संगतिकी इच्छा करनेसे रागियोंमें महान् रागी तुम ही हो । सम्यग्दर्श-27 नादिकरत्नोंका संग्रह करनेसे परिग्रहियोंमें महान् परिग्रही तुम ही हो और कर्मरूपी वैरीके मार डालनेसे हिंसकोंमें महा हिंसक तुम ही हो । कपाय और इंद्रियोंके जीतनेसे जेता-III ओंमें महान जेता तुम ही हौ । अपने शरीरमें इच्छारहित होने पर भी लोकाग्रशिखरकी चांहवाले हो । देवियोंके वीचमें रहकर भी परम ब्रह्मचारी हौ और हे देव एक मुखवाले 8 जातुम अतिशयसे चार मुखवाले दीखते हो। लोकसे विलक्षण लक्ष्मीसे भूपित होनेपर भी हे जगत्के गुरु महान् निग्रंथराज | हो इस लिये अद्वितीय गणोंके मुखिया आप ही हौ । हे देव ! आज हम धन्य हैं आज Ka हमारा जीना सफल हुआ है और हे विभो! तुमारी यात्राके लिये आनेसे आज ही हमारे चरण कृतार्थ हुए हैं । हे गुरु हे ईश तुमारी पूजा करनेसे आज ही हमारे हाथ सफल हुए हैं और तुमारे चरण कमलोंको देखनेसे आज ही नेत्र सफल हुए हैं। तुमारे चरणकमलोंके प्रणाम करनेसे आज मस्तक भी सफल हुआ आपकी
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy