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________________ सूड़ोंवाला गोल शरीरका धारक इच्छित रूप बनानेवाला जिसकी श्वास उच्छास सुगंधित ।। लंबी, बड़े होठोंवाला दुंदुभिवाजेके समान शब्दवाला सुंदरस्वभावी कानरूपी चमरोंसे शोभित दो महान् घंटाओं सहित घुघुरुओंकी मालासे शोभायमान सोनेके सिंहासनका धारक जंबूद्वीपके समान विस्तारवाला अपने श्वेतरंगसे सब दिशाओंको सफेद करनेवाला मदके झरनेसे जिसका अंग भीग रहा है पर्वतके समान विक्रिया ऋद्धिमई ऐसाथा । FI उस हाथीके बत्तीस मुंह और हरएक मुखमें आठ २ दांत, हरएक दांतपर रम-115 Kणीक तालाव जलसे भरे हुए थे । प्रत्येक सरोवरमें एक एक कमलिनी हरएक कमहालिनीके आसपास बत्तीस २ कमल प्रत्येक कमलके बत्तीस २ रमणीक पत्ते उन पत्तोंयापर दिव्यरूपवाली मनको हरनेवाली बत्तीस अप्सरायें नाचनेवाली थीं। वे अप्सरायें | हालयसहित मुसकराती हुई भोंहें मटकाती मृदंगकी ताल आदिसे गीत गाती शंगारादिरस दिखलाती नाचती हुई । इत्यादि वर्णन सहित उस गजेंद्रपर अति पुण्यात्मा वह इंद्र अपनी इंद्राणी सहित बैठता हुआ अत्यंत शोभायमान होने लगा। वह इंद्र श्रीमहावीर स्वामीके केवलज्ञानकी पूजाके कारण जाता हुआ अपने अंगके आभूषणोंकी किरणोंसे तेजकी खानिके समान मालूम होने लगा। प्रतींद्र भी बड़े ठाठसे || अपनी सवारीपर चढके अपने परिवार सहित इंद्रके साथ भक्तिसे निकलता हुआ। लन्डन्न्छन्
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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