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________________ लन्डन्सल म. वी. चंदना प्रभुके पास गई । माला भूषण पहरे हुए वह सती नमस्कार कर विधिसहित उन पु. भा. प्रभुको पड़गाती हुई। अ.१३ उसके शीलकी महिमासे कोदोंका भात सुगंधित चावलोंका भात हो गया और मट्टीका सरवा सोंनेका वासन हो गया। देखो पुण्यकर्म ही पुरुषोंके न होनेवाली वस्तुको 3. उसी.समय तयार कर देता है चाहें वे कितनी ही दूर हों ऐसे मनोवांछित कार्योंको । | सिद्ध कर देता है. इसमें कुछ शक नहीं समझना । उसके बाद वह सती नव प्रकारकी | पुण्यरूप परम भक्तिसे खुशीके साथ उस प्रभुको आहार दान देती हुई। उस समयके १ उपार्जन किये हुए महान् पुण्यसे वह सती रत्नवर्षा आदि पांच आश्चर्य करनेवाली वस्तु. ३ 2 ओंको पाती हुई और अपने कुटुंवियोंको पाती हुई । हे प्राणियो देखो उत्तम दानसे क्या क्या वस्तु नहीं मिलसकती सभी मिलसकती है। उस चंदना सतीका चंद्रमाके समान निर्मल यश उत्तम दानके प्रभावसे सब दुनियां में फैलगया और बंधुओंसे मेल है। भी हो गया। . १. अथानंतर वे महावीर भगवान् भी छद्मस्थ अवस्थामें मौनी होकर विहार करते। । हुए बारह वर्ष विताकर जूंभिका गांवके बाहर मनोहर वनमें ऋजुकूला नदीके किनारे ॥९ ॥ महान् रत्नोंकी शिलापर शालवृक्षके नीचे प्रतिमायोग धारकर षष्ठोपवासी होके ज्ञानकी सन्दर006
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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