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________________ GB - - हुए मुंह फाडते हुए और हाथोंमें पैनैं हथियार लिये हुए अनेक स्वरूपोंसे उस गुरुके ध्यानको नाश करनेवाला बडा उपसर्ग करता हुआ। . . । ऐसे उपद्रव होनेके समय मेरुके शिखरके समान वह महावीर प्रभु उन करोड़ों उपद्रवोंके होनेपर भी ध्यानसे थोडासा भी चलायमान नहीं होता हुआ। उसके बाद II वह पापी रुद्र श्रीजिनस्वामीको निश्चल जानकर फिर वह धूर्त सर्प सिंह हाथी हवा अग्नि आदि दूसरे कारणोंसे तथा भयानक वचनोंसे निर्वलोंको भय देनेवाला ऐसा महान् । हाघोर उपसर्ग श्रीमहावीर प्रभुको करता हुआ। तौभी वह महावीर देव अपने स्वरूपसे ही Malकुछ भी चलायमान नहीं हुआ किंतु ( बल्कि ) अपने आत्मध्यानको पकड़ सुमेरुपतकी तरह निश्चल रहा। उसके बाद पापोंके कमानेमें चतुर वह दुष्ट उन महावीर प्रभुको धीरतावाले और महा। बुद्धिमान् जानकर अन्यभी परीसहायें देता हुआ । कभी हथियार हाथमें लिये हुए डरा-10 सावने दुस्सह निर्बलोंको भय देनेवाले अनेक तरहके भीलोंके आकारोंसे उपसर्ग करता। ह हुआ। इत्यादि अनेक कठिन उपद्रवोंसे घिरा हुआ भी वह जगत्का स्वामी था तौभी, पर्वतके समान निश्चल मनमें थोडासा भी खेद नहीं करता हुआ। आचार्य कहते हैं कि कभी अचलपर्वत चलायमान हो जावें तो हो जाओ परंतु योगियोंका चित्त सैंकड़ों
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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