SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ उस समय देव जय जय आदि शब्दोंके साथ ऐसे श्रेष्ठ वचन कहते हुए कि हे प्राणियो! यह उत्तमपात्र श्रीमहावीर प्रभु दाताको संसार समुद्रसे तारनेवाला है और यह|| शिदाता भी महान् धन्य है कि जिसके घरमें यह जिनराज आया । यह उत्तम दान पुरु पोको स्वर्गमोक्षका कारण है । देखो इस लोकमें जैसे पात्रदानके प्रभावसे अमूल्य करो साड़ों रत्नोंकी प्राप्ति होती है और निर्मल यश फैलता है उसीतरह परलोकमें भी अमूल्य Kill संपदायें स्वर्ग और भोगभूमिमें मिलती हैं जो कि महान् भोगोंके देनेवाली हैं। उस हवाके होनेसे राजमहलका आंगन रत्नोंकी ढेरियोंसे भरगया । उसे देखकर कोई बुद्धिमान आपसमें ऐसा कहने लगे कि दानका उत्तम फल यहांपर भी देखो कि जिसके प्रभावसे यह राजमंदिर रत्नोंकी वासे पूरित हो रहा है। यह बात सुनकर कोई बुद्धिमान् कहने लगे कि यह तो थोडा फल है किंतु । दानके प्रभावसे स्वर्ग और मोक्षके सुख मिल सकते हैं । उनके वचन सुनकर और||| दानका फल प्रत्यक्ष आखोंसे देखकर कितने ही जीव स्वर्गलक्ष्मीके भोगोंके देनेवाले पात्रदानमें बुद्धि करते हुए । उस दानके समय वीतरागी श्रीमहावीर तीर्थंकर रागादिकको दूरसे छोड़कर पाणिपात्रसे खड़े हुए शरीरकी स्थितिके लिये वह क्षीरका आहार लेकर दानके फलसे उसका घर पवित्र करके वनको गये । उस उत्तमदानसे राजा भी इन्जन्सन्कन्छन् न्जन्छन्सन्छन्डसकन्द
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy