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________________ म. वी. है। अपने शरीरके भोगोंके सुखमें इच्छारहित आपको नमस्कार है मोक्षरूपी स्त्रीके.पु. भा. सुखमें वांछासहित ऐसे आपको नमस्कार है । अद्भुत पराक्रमी वालब्रह्मचारी राज्यहा लक्ष्मीसे विरक्त अविनाशी लक्ष्मी ( मोक्ष ) में रक्त तुमको नमस्कार है । योगियोंके भी अ.१२ ॥७९॥ गुरु होनेसे महान् गुरु आपको नमस्कार है । सब जीवोंके मित्र तुमारे लिये नमस्कार है । 1 और स्वयं जानकार ऐसे आपको नमस्कार है। हे महान दानी इस स्तुतिसे इसलोक और पर लोकमें तपस्या और चारित्रकी है। सिद्धिके लिये आप अपनी सव शक्ति दो। हे नाथ वह शक्ति मोहरूपी शत्रुके नाश करने. वाली है । इसप्रकार जगतके स्वामियोंसे पूजित ऐसे श्री महावीर प्रभुकी स्तुति और उ2 नसे अपनी इष्टमार्थना करके अपना कर्तव्य पूरा कर परम पुण्यको उपार्जन कर सैंकडों। । स्तुति पूजाओंसे प्रभुके चरणकमलोंको चार २ नमस्कार कर वे देवर्पि लोकांतिकदेव । अपने स्वर्गको गये। उसीसमय देवासहित चारोजातिके इंद्र घंटादिका शव्द होनेसे प्रभुका संयमोत्सव जानकर भक्तिसे अपनी इंद्राणियोंके साथ महान् विभूतिसे अपनी २ सवारियोंपर चढ कर अत्यंतउत्साहसे उस नगरमें आते हुए।देवोंकी सेना अपनी देवियों और सवारियों सहित १ ॥७९॥ है उस नगरको वनको तथा रास्तेको चारों तरफसे घेरकर आकाशमें प्रसन्नतासे ठहरती हुई।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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